विंटर ट्रैकिंग : कमरुनाग-शिकारी देवी-जंजैहली (Winter Trekking : Kamrunag-Shikari Devi-Janjhaili)

1 फरवरी 2018
कल रात चूहों ने स्लीपिंग बैग में घुसने के अलावा बाकी सब किया । हम 2 हैं, जनवरी का आखिरी दिन है, शिकारी तक पहुंचने के लिए कमर तक बर्फ में डूबना होगा, शिकारी शाम को पहुंचते हैं । सराय है, पर पानी नहीं है, तो बर्फ पिघलाते हैं । बाहर हवा जमी हुई बर्फ को उखाड़ रही है । आगे के रास्ते को लेकर दुविधा है, 2-3 बार गलत रास्ता लेते हैं, बर्फ ही बर्फ है । उतराई है, जैसे-तैसे बूढा केदार पहुंचते हैं, जंजैहली से बस, बस से एक्टिवा और अंत में रात 10 बजे बीड़ । विंटर एडवेंचर पूरा हुआ ।

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विंटर शिकारी माता यात्रा जनवरी 2018

रात भर चूहों ने कमरुनाग को सिर पर उठाये रखा। पूरी रात कुतर-कुतर में ही बीत गयी, शायद सभी मादा चुहिया थी । सुबह पता चला कि “रात भर जो युद्ध चला उसका कारण हमारे आलू के पराठे थे, पूरी सफाई से पराठों की आउटलाइन को पेशेवर कलाकार की तरह कुतर दिया गया था” ।

कुरेदी गई नक्काशी को पूरी कुशलता से काटकर और नहीं खाकर हमने अपने कलाप्रेमी होने का सबूत दिया । चाय के साथ मैंने और नूपुर ने एक-एक ‘सेमी-पराठा’ खाया और शिकारी देवी के लिए 09:18 पर कूच किया । गोएल साब ने बद्दी से फ़ोन पर हमसे 'मन की बात' कही थी कि “मित्रों कमरुनाग से शिकारी का रास्ता बहुत लम्बा है, बस चलते जाना पहुंच जाओगे” । तरुण गोएल का जिक्र कर रहा हूँ जिनके घुटने की हड्डी गलत तरीके से जुड़ गयी है, सुना है आजकल घुटने से टिक-टिक की मधुर ध्वनि भी सुनाई दे रही है । 

आगे के रास्ते की लम्बाई 15-16 किमी. बताई गयी है, जिसमें लगभग 8-9 घंटे का समय लगेगा । पिछले जन्मों के कर्मों के हिसाब से अगर कर्म अच्छे हुए तो पानी मिल जायेगा नहीं तो बर्फ तो है ही । 24 जनवरी को गिरी ताजा बर्फ आज घुटनों के नट-बोल्ट खोलने को मचल रही है 

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शिकारी देवी के रास्ते पर (PC : Nupur Singh)

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धीरे-धीरे बढती ऊँचाई और बर्फ

मौसम साफ है, धूप तेज है, बर्फ के नीचे पगडंडी है और मोबाइल पर तिवारी जी की जी.पी.एक्स. फाइल हमें उड़ाकर ले जाने को उत्तेजित । चीड़ के जंगल से बाहर निकलते ही धौलाधार, पीर-पंजाल और किन्नौर रेंज का अलौकिक दर्शन होता है । बहुत सारे फोटो खींचते हैं बिना किसी चोटी की पहचान के । नजारा चमत्कारी है, मैं फोटो खींच रहा हूँ, लोस्ट सोल नूपुर अमरूद नीचे गिरा देती है नजारों के चक्कर में (शायद वो जानती नहीं है कि "अमरुद के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं") । लड़की सुध-बुध खोती महसूस हो रही है । कमरू और शिकारी के बीच यह स्थान शिकारी के बाद दूसरा सबसे ऊँचा स्थान है । यहां की ऊँचाई 3054 मी. है और यह कमरू से 2.2 किमी. दूर है । यहीं से शिकारी देवी मंदिर के पहले दर्शन होते हैं ।

नीचे दर्शायी पनोरमा को डाउनलोड करने के इए यहां क्लिक करें 

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22 चोटियां नाम सहित, आप भी अपना योगदान दें  पर्वत पहचानने में  (Stich by : Nupur Singh)

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शिकारी देवी मंदिर के पहला दर्शन

तिवारी जी की जानकारी के हिसाब से आलू के खेत आ गये हैं । उनके अनुसार यहाँ घर और पानी मिलेगा, घर तो मिले परन्तु पानी नहीं, लेकिन लड़की ने अपनी होशियारी का प्रदर्शन दिखाया और जमे हुए नल के नीचे इक्ठ्ठे पानी से एक बोतल भर ली । यह जगह खूबसूरत है, हरियाली और बर्फ का अनूठा संगम । 

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अब यह नजारा कभी नहीं भुलाया जायेगा 

लकड़ी के पुराने घर हैं जो आजकल खाली हैं । 2-2 घूंट पानी का और 1-1 अमरुद खाते-खाते हम आगे बढ़ते हैं । नूपुर के इमोशन बाहर आ जाते हैं, उसकी माने तो गर्मियों में वो इस रूट पर रन करना पसंद करेगी, वो बार-बार कह रही है कि “उसे ऐसे खुले पहाड़ी बुग्याल बहुत पसंद है, ऐसी जगह रहो और खुद को ट्रेनड करो” । लग रहा है उसके भीतर स्थित किलियन जाग रहा है ।

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मानो खेतों में बर्फ बीजी जा रही है

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यहाँ से आगे लाल मिट्टी शुरू हो जाती है जो बर्फ पिघलने से दलदली हो गयी है । पूरे 2 नम्बर बड़े और 2 किग्रा. से थोड़ा हल्के मेरे ‘येती शूज’ का वजन कीचड़ ने 3 किग्रा. से थोड़ा ज्यादा बढ़ा दिया है । यहाँ "पैर भारी होना" मुहावरे का अर्थ समझ आ रहा था 

जी.पी.एक्स. के हिसाब से हम ठीक जा रहे हैं । आलू के खेतों के बाद हमें रास्ते में 2 जगहों पर और लकड़ी के घर मिलते हैं लेकिन दोनों ही खाली हैं । अंतिम झोंपड़ी के बाद हम मुख्य रास्ते से थोड़ा भटक जाते हैं और घुटनों से ऊपर तक बर्फ में फंस जाते हैं लेकिन थैंक्स टू तिवारी जी जिनके गाइड की सहायता से हम पुनः सही रास्ते पर आ जाते हैं । अब पगडंडी फिर से एकदम से नीचे उतर रही है, बर्फ से ढकी है जिस वजह से रास्ते पर टिके रहना मुश्किल होता जा रहा है ।

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आलू के खेत और सामने दिखते खाली घर 

दोपहर के पौने दो बज गये हैं, यहाँ खुली छत का मंदिर है जिसके दाएं-बाएं से 2 रास्ते निकल रहे हैं । बाएं को चुनकर हम उसपर चल पड़ते हैं लेकिन लगभग 100 मी. आगे जाकर मोबाइल बताता है कि “वी आर लीविंग मेन रूट” । 
वापस मंदिर तक पहुंचते हैं, थोड़ा सोचकर बीच वाली पगडंडी को लेता हूँ जो सीधा ऊपर ले जा रही है । यहाँ की ऊँचाई 2726 मी. है, शिकारी की ऊँचाई लगभग 3300 बताई जाती है, मतलब अब युद्ध होगा, टाँगें कांपेंगी, बार-बार दिल करेगा रुकने का ऊपर से चढ़ाई और बर्फ ही बर्फ ।

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जंगल के बीच दो राहें, हमने बीच वाली ली

पसीने ने सारे कपड़े भिगो दिए हैं, हम नॉन-स्टॉप 11 किमी. आ चुके हैं । नीचे एक स्थानीय बुजुर्ग के दिखाई देते ही ख़ुशी महसूस होती है । मैं चिल्लाता हूँ, हाथ हिलाता हूँ, वो पलटते हैं, मुझे देखते हैं पर कुछ नहीं कहते और अपनी गायों को हांकने में व्यस्त हो जाते हैं । हम पानी पीते हैं, पैर पिटते हैं और फिर से आगे बढ़ जाते हैं ।

2906 मी. पर हम रुकना तय करते हैं । यह हमारा पहला स्टॉप है, अब तक 13.5 किमी. की दूरी तय की जा चुकी है । दोनों एक-एक पराठा खाते हैं, जिनसे चूहों के डीयो की सुगंध आ रही है । मैं तिवारी जी की जी.पी.एक्स. फाइल की तारिफ करता हूँ, बार-बार होती तारिफ के बदले नूपुर मुझको शक्की लुक देती है, इन-डायरेक्टली वो मुझे तिवारी जी का भक्त बोलती है । 

जंगल है, पगडंडी बर्फ में दबी है और चढ़ाई है । मन कर रहा है उड़कर मंदिर तक पहुंच जाऊं । मोबाइल को देखता हूँ तो पता चलता है फिर से गलत दिशा में जा रहे हैं । चढ़ाई और जंगल के खत्म होने से पहले ही बिजली के खम्बे दिखाई देते हैं और शिकारी पहुंचने की ख़ुशी सातवें आसमान पर पहुंच जाती है । फारेस्ट गेस्ट हाउस पार करते ही बर्फ की गहराई बढ़ जाती है, बर्फ यहाँ दो फुट गहरी है । चलने में परेशानी हो रही है लेकिन यहाँ से दिखता नजारा अविस्मरणीय है । फारेस्ट गेस्ट हाउस से मंदिर तक चढ़ाई है और दूरी 1.5 किमी. है ।

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बढती बर्फ की गहराई

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और दिखा पीर पंजाल

4 बजकर 20 मिनट पर पहला कदम रखते हैं माँ शिकारी देवी के द्वार पर यहां ब्लैक आइस जमी है । माथा टेक कर हम 10 मिनट मंदिर में बिताते हैं । अब वक्त था एक अच्छी सराय ढूँढने का जिसमें ज्यादा समय नहीं लगा । सीमेंट का फर्श, कोने में चूल्हा, कमरे में 1 गद्दा और 2 मैट्रेस के मोह ने हमारी जरूरत को पूरा कर दिया था । इसका नाम ‘भीम सराय’ है, और हम कमरा नम्बर-2 में हैं ।

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जय माँ शिकारी देवी

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जय माँ शिकारी देवी

यहाँ पानी नहीं है, शुक्र है आसपास की सरायों से लकड़ी का इन्तेजाम हो जाता है । आज ‘सूपर ब्लू मून’ चंद्रग्रहण है, नूपुर की पूरी तैयारी है रंग बदलते चाँद को शूट करने की लेकिन आज मौसम ने हुडदंग मचा रखा है । हवा इतनी तेज है मानो ‘भीम सराय उड़ जाएगी । थोड़ी देर के लिए जैसे ही मौसम साफ होता है वैसे ही दोनों अपनी-अपनी कला दिखाकर कुछ अच्छे फोटो निकाल लेते हैं ।

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ढलते सूरज के बीच फोटो के दाईं तरफ दिखाई देती सराय (PC : Nupur Singh)

आग जल चुकी है, चाय के बाद सूप पिया जा चुका है । गज्जक खाते हैं, खजूर चबाते हैं, बर्फ पिघलाकर पानी पीते हैं और पुलाव बनाते हैं । पुलाव का स्वाद अमेजिंग है । रात सवा दस बजे हम स्लीपिंग बैग में घुसते हैं । अभी बाहर तापमान -7.5 डिग्री है और एक्युवेदर की माने तो रात को -12 डिग्री तक नीचे गिरेगा । अच्छी बात है कि हमारे पास आग है और बुरी बात यह है कि यहाँ भी चूहों का दल है । आशा करता हूँ कि कल की तरह आज भी हमारी इज्जत सुरक्षित रहेगी ।

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भीम सराय, कमरा नंबर-2 (PC : Nupur Singh on Timer)

शिकारी देवी : शिकारी देवी का मंदिर 3313 मी. की ऊँचाई पर स्थित है । मेरी रिकॉर्डिंग के हिसाब से 
शिकारी देवी की पैदल दूरी कमरुनाग मंदिर से लगभग 16.5 किमी. है जिसमें 1324 मी. का हाईट गेन शामिल है, जिसे तय करने में हमें 6 घंटे 30 मिनट का समय लगा । यह मंदिर इतनी खास जगह है कि यहाँ से बहुत सारी पर्वतीय चोटियों को पहचाना जा सकता है जैसे, ग्रिफ्फ्न, हनुमान टिब्बा, शिखर बह, मुकर बह, मनाली, शितिधार, फ्रेंडशिप, गोह किंचा, पतालसू, गेह्प्न गोह, रोहतांग पास, मुलकिला, इन्दर किला, दियो टिब्बा, इन्द्रासन, रत्न थड़ी, पापसुरा, धर्मसुरा, शिन्ग्रिला, कुल्लू मकालू, कुल्लू पुमोरी, शिग्री पर्वत, पार्वती पर्वत, मनिरंग, रियो पुर्ग्याल, साउथ पारबती, और पिरमिड पीक ।

शिकारी देवी मंदिर हिमांचल प्रदेश के जन्जैली गाँव (मंडी डिस्ट्रिक्ट) के पास स्थित एक छत विहीन मंदिर है जिसका निर्माण पांडवो ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था ।

स्थानियों के अनुसार इस मंदिर में बहुत बार छत लगाने का प्रयास किया गया परन्तु माता की शक्ति के प्रभाव से इस मंदिर की छत का निर्माण कभी पूरा नही हो सका । हर बार छत के निर्माण को लेकर तरह-तरह की बाधाएं आई परन्तु मंदिर के छत के निर्माण का कार्य कभी पूरा नही हो सका । मान्यता है कि पांडवो द्वारा माता के मंदिर का निर्माण बगैर छत के ही हुआ था तथा उन्होंने मंदिर में माता की मूर्ति खुले स्थान में स्थापित की थी ।

स्थानियों के अनुसार “मार्कण्डेय ऋषि ने मंदिर वाली जगह पर वर्षों तक माँ दुर्गा की तपस्या करी थी और फलस्वरूप माँ दुर्गा ने उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें शक्ति के रूप में दर्शन दिए । बाद में पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहाँ आये तथा उन्होंने शक्ति रूप में माता की तपस्या करी जिस से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें महाभारत के युद्ध में कौरवों से विजयी होने का आशीर्वाद दिया ।

शिकारी देवी नाम के सन्दर्भ में यह कथा प्रचलित है : मंदिर के नामकरण के बारे में यहां के लोग बताते हैं कि “बहुत सालों पहले यहाँ पर बहुत घना जंगल हुआ करता था तथा यह स्थान बहुत से शिकारी कबीलों का घर था । शिकारी अपने शिकार में सफलता पाने के लिए इस मंदिर में माता की पूजा करते थे और जब उन्हें अपने शिकार में सफलता मिलने लगी तब फलस्वरूप उन्होंने इस मंदिर का नाम शिकारी देवी रख दिया” ।

एक अन्य मान्यता है कि “आंखों में कोई बीमारी होने पर अगर माता को बनावटी आंख चढ़ाई जाएं तो आंखों की बीमारी ठीक हो जाती है । बहुत से भक्त हर साल आखें ठीक होने पर शिकारी माता मंदिर में चांदी की आखें चढ़ाते हैं ।

1 फरवरी 2018 की सुबह हसीन थी, धूप निकल चुकी थी और पीर-पंजाल पर्वतीय रेंज अपने चर्म पर चमक रही थी । तिवारी जी के अनुसार आज का रास्ता छोटा होगा और जंजैहली तक उतराई ही उतराई है, इसलिए हमने थोड़ा समय शिकारी देवी मंदिर पर बिताया और अपना आज का सफर 09:40 मिनट पर शुरू किया । शिकारी देवी तक जंजैहली से मोटरऐबल मार्ग भी बन गया है, जिसका प्रयोग गर्मियों में भरपूर किया जाता है ।

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शिकारी देवी से बूढा केदार की ओर

स्पिति जैसे जमे हुए झरनों का नशा है इसलिए हमें ‘बूढा केदार’ जाना है । बूढा केदार का रास्ता शिकारी मंदिर के पीछे से नीचे उतरता है । जंगल घना है इसलिए बर्फ भी काफी गहरी है । आधे किमी. बाद ही हम रास्ता भटक जाते हैं जिसके बाद सही रास्ते तक आने में कमर तक बर्फ में लगभग 700 मी. चलना पड़ता है । नूपुर कमर से भी ज्यादा डूब जाती है, एक-दो बार वो पूरी ही गायब हो जाती है । 

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दौर बर्फ के न होते खत्म 

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जंगल ट्रेल टू बूढा केदार 

थोड़ा नीचे उतरने पर हमें कुछ झोंपड़ियाँ दिखाई देती हैं जहां कोई नहीं है । यहाँ बैठकर हम अपनी-अपनी गीली जुराबों को निचोड़ते हैं और फिर से आगे बढ़ते हैं । उतराई तीखी है और बर्फ की गहराई उससे भी ज्यादा । इस रास्ते पर अगर हमारे पास जी.पी.एक्स. फाइल न होती तो यहाँ रास्ता भटकना बिल्कुल आसान हो जाता है । अगेन थैंक्स टू अमित तिवारी ।

थोड़ा और नीचे उतरते हैं यहां भी 1-2 झोंपड़ियाँ है और अगेन नो वन इज हेयर । बर्फ और उतराई की वजह से हम तेजी से नीचे उतर रहे हैं, वो बात बिल्कुल अलग है कि कई बात मुंह के बल गिरना भी पड़ा । 2-3 बार और रास्ता भटकने के बाद आख़िरकार हम बूढा केदार मंदिर 12 बजे पहुंचते हैं । यह स्थान 2740 मी. पर स्थित है और शिकारी देवी मंदिर से लगभग 5 किमी. दूर है । बड़ी सी चट्टान के नीचे महादेव का मंदिर है जिसके सामने से बहता झरना जमा हुआ है, और यह झरना लगभग 2 किमी. नीचे तक जमा हुआ मिला ।

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गद्दियों के खाली डेरे 

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बूढा केदार का जमा हुआ नाला 

बूढा केदार : यह स्थान देवदार, क्रिस्टल क्लियर जल धाराओं से पर्यटकों को आकर्षित करता है । कहा जाता है कि “अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां आए थे और नंदी को इस स्थान पर देखा था । नंदी भीम से खुद को बचाने के लिए एक चट्टान पर कूद गया और चट्टान के माध्यम से गायब हो गया । यहाँ स्थित चट्टान का आकर बैल की कमर की भांति दिखाई देता है । लोग इस जगह पर पूजा करते हैं और पास के धारा में पवित्र स्नान करते हैं” ।

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नंदी चट्टान 

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जय बूढा केदार देव की

शिकारी देवी से जंजैहली की पैदल दूरी 11.8 किमी. है, 236 मी. हाईट गेन के साथ साथ (डिसेंट 1476 मी.) । बूढा केदार से जंजैहली की पैदल दूरी लगभग 6 किमी. है ।

बूढा केदार तक लोगों के पैरों के निशान बने हैं, शायद कुछ दिनों पहले ही कोई ग्रुप आया होगा और इस वजह से बर्फ सख्त हो गयी है । अब सीढियों पर उतरने पर दांत तुडवाने का डर बढ़ गया है । फिर भी धीमी स्पीड के साथ आखिरकर जंजैहली हम दोपहर पौने दो बजे पहुंच जाते हैं, जहां बस स्टैंड पर चैल चौक की 2 बजे वाली बस तैयार खड़ी है । 14 रु. की 2 कप चाय पीकर हम बस की पिछली सीट पर सवार हो जाते हैं ।

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जंजैहली वापसी 

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लगभग सबकुछ जमा हुआ था 

जंजैहली से चैल चौक की दूरी 80 किमी. है जिसे तय करने में बस 3 घंटे लेती है । चैल चौक पहुंचकर मनोज भाई को कॉल करते हैं और उन्हें धन्यवाद देकर एक्टिवा पर सवार हो जाते हैं ।
“लेट्स गो टू बीड़”

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और पहुंच गये इंसानी बस्ती में 

लेकिन पहले चैल चौक पर रुककर बर्गर खा लेते हैं, वैसे भी डर है कि “पिछले 2 दिनों से शरीर को जंक फूड न देने के कारण शरीर खराब न हो जाए” । बर्गर बनाने वाला लड़के का नाम ‘अजय’ है, मथुरा से है और अभी 14 साल का । नौवी कक्षा में है जिसकी तैयारी वो ओपन से कर रहा है । 20 फरवरी को उसके बड़े भाई की शादी है मथुरा में, वो भी शादी में शामिल होगा और यहाँ से 10 फरवरी को निकलेगा । उसके हिसाब से वो पढ़ाई में अच्छा है, उससे हाथ मिलाकर हम चैल चौक को अलविदा कहते हैं, यही वह पवित्र स्थान है जहां नूपुर को हिरोइन बनने के लिए ललकारा गया था ।

दादौर में जब घुटने ठंडी हवा से जाम होने लगे तब हमने अपने-अपने आप को जितने भी कपड़े थे सबसे कवर कर लिया । मैंने पहले से पहनी नीचे-ऊपर की 2 लेयरस को 3 में बदल दिया । एक्टिवा मंडी तक 60 की स्पीड पर चली और पधर पहुंचकर हमने उसके टैंक को फुल कराया । यहाँ तक पहुंचते-पहुंचते अँधेरा हो गया था । अब असली एडवेंचर शुरू हुआ, 6 बाय 6 आई साईट वाला बन्दा भी खज्जल हो जाए एक्टिवा की हेडलाइट की दम तोडती रोशनी देखकर । सामने से आती हाई बिम ने हमारी मुसीबतों को और बढ़ा दिया था । समय-समय पर नूपुर पीछे से याद दिलाती रही कि “बाबा आराम से चलाओ, जान है तो जहां है” ।

रात सवा दस बजे हमने बीड़ में एंट्री मारकर हमने विंटर एडवेंचर ट्रिप को ‘दी एंड कहा ।

3 दिन के ट्रेक की ब्यौरा इस प्रकार है :

पहला दिन : 
बीड़ से चैल चौक, एक्टिवा से (100 किमी.)
चैल चौक से रोहांडा, बस से (28 किमी.)
रोहांडा से कमरुनाग मंदिर, पैदल (5 किमी., समय लगा 2 घंटे)

दूसरा दिन : कमरुनाग मंदिर से शिकारी देवी, पैदल (16.5 किमी., समय लगा 6 घंटे 30 मिनट )

तीसरा दिन : 
शिकारी देवी से बूढा केदार, पैदल (5 किमी., समय लगा 2 घंटे 30 मिनट)
बूढा केदार से जंजैहली, पैदल (6.5 किमी., समय लगा 1 घंटा 24 मिनट)
जंजैहली से चैल चौक, बस (80 किमी.)
चैल चौक से बीड़, एक्टिवा से (100 किमी.)

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3 दिन के ट्रेक पर 1424 रुपयों का खर्चा हुआ

इस रूट की जी.पी.एक्स. यहाँ से डाउनलोड करें :

और हाँ 2 वीडियो भी है, देखना न भूलना :





Comments

  1. बढिया विंटर यात्रा रही। तिवारी जी की एप बहुत काम आई। बहुत साहसिक यात्रा थी बर्फ पर चलना, चुहो से जंग व बर्फ का पानी। यह सब काफी यादगार रहेगा।

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    1. तिवारी जी की जी.पी.एक्स. फाइल ने हर कदम सही दिशा में उठवाया । आशा करता हूँ यह फाइल सभी घुमक्कड़ों के काम आ सके ।

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  2. रोमांचक यात्रा रही आपकी। यात्रा वृत्तांत भी पढकर ऐसा लगा मानों मैं भी आपके साथ ही हूँ। अभी वहाँ जाना कैसा रहेगा? अपनी राय बतायें।

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    1. जंजैहली साइड से जाओगे तो जल्दी पहुंच जाओगे और मजा भरपूर । अगर तैयारी पूरी हो तो कभी भी निकल पड़ो श्रीमान । और आपका स्वागत है हिमालयन गर्भ में ।

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  3. Sari pics boht sunder h or no. 5 pic best h or video dekh kr Maja Aa gya aage bhi ese video dalte rhiyega

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    1. धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया के लिया । मेरे लिए तो सभी मेरे अनमोल रत्न हैं ।

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  4. हम लोग बूढाकेदार नहीं जा पाये थे। इस बार बारिश में नहीं जाऊंगा।
    बर्फ में चलना, सजा और मजा दोनों मिलता है।
    बढिया यात्रा।

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    1. राम राम भाई जी, अब तो मुझे भी बारिश में चलने पर कष्ट होने लगा है । आपका कमेन्ट हमेशा पोजिटिव ऊर्जा देता है ।

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  5. बड़िया यात्रा लेख

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  6. शानदार लेख रोहित जी
    शिकारी देवी से दिखने वाली जगहों और चोटियों के की जानकारी देने के लिए धन्यवाद

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    1. प्रदीप जी का स्वागत है यहां आने के लिए । शुभकामनाएं...

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