1877 रू. में 2 कैलाश दर्शन : गुफा-किन्नर कैलाश-पोवारी (2 Kailash visited in just 1877 rs. : Gufa-Kinner kailash-Powari)

28 जुलाई 2017
“आँखों ने टिमटिमाते हुए अंगडाई ली और स्लीपिंग बैग के आँचल से झांककर गुफा से बाहर देखने की कोशिश शुरू करी, चेहरे ने बाहर आते ही ठंडी हवा का स्वाद चखा । कल की शाम कुछ ज्यादा ही हसीन हो गयी थी और रात भी । पूरी रात टांगों को सीधा होने का मौका ही नहीं मिला, जब भी दोनों को सीधा करना चाहा वैसे ही किसी-न-किसी की वजह से उन्हें फिर से टेढ़ा होना पड़ा । #टेड़ी_हैं_पर_मेरी_हैं ।

kinner kailash yatra
किन्नर कैलाश यात्रा 2017 

शायद जो मेरा हाल था वही बाकी चारों का भी तभी तो मेरी अंगड़ाई का शोर सुनते ही चारों एकदम से जाग गये । कल की शुभ-संध्या के बाद आज मैं दुआ कर रहा था कि "प्लीज आज सब कुछ शांत रहे" लेकिन कुदरत को भी कुछ और ही मंजूर था । माँ की गाली देते हुए कल्पा को कांडी ने दिन का शुभारम्भ किया, जिसके बदले में कल्पा ने गलती से मिर्गी के मरीज को लात मारकर वार शुरू कर दिया ।

माँ, बहन, और शारीरिक अंगों के भिन्न-भिन्न प्रकार के मधुर उच्चारण के बाद मिर्गी के मरीज ने आँखे खोली और बिल्कुल शांत मुद्रा में बैठकर बीड़ी सुलगा ली । बीड़ी ने जलते ही क्रोध की अग्नि को तुरंत बुझा दिया । बीड़ी बुझने के दौरान मैंने स्लीपिंग बैग पैक कर दिया और एक छोटा बैग तैयार कर लिया कैलाश दर्शन के लिए ।

मेरी तैयारी देख चारों ने भी तुरंत अपने कम्बल तह करके रख दिए । कल्पा को कुछ गालियों और मिडिल फिंगर का सामना करना पड़ा जब उसने आगे के लिए 2 बैग लेकर जाने की बात कही । कांडी के हिसाब से उन्हें सिर्फ 1 ही बैग ले जाना चाहिए, अगर 2 बैग ले गये तो किसी-न-किसी की मौत पक्की है बोलकर उसने मेरी तरफ देखा । “मेरी मौत तो पक्की है अगर मैं तुम लोगों के साथ टॉप तक गया तो”, ऐसे ख्याल सिर्फ दिमाग में ही आ रहे थे जुबान पर नहीं । गाली-पसंद लोगों के सामने आप कुछ न ही बोले तो अच्छा है, हाँ गाली देना एक अलग बात है ।

कल्पा काफी होशियार था उसने कांडी की सलाह को इस शर्त पर मान लिया कि बैग वो खुद ही उठाएगा । भरी बीड़ी के तेश में कांडी ने बैग को उठाना स्वीकार कर लिया । जल्द ही नाश्ते में थोड़ी और गालियों और सामान के उठा-पठक के बाद 1 बैग तैयार हो गया । सीन ये था कि अब सिर्फ कांडी दुखी था जबकि बाकी तीनों भरपूर सुखी । कांडी का मुंह तब और लाल हो गया जब मिर्गी के मरीज ने कांडी के मुंह पर कमेंट मारा कि “20 कदम चलते ही हरामी बीड़ी मांगेगा” ।

‘शिट’,

ये शब्द पाँचों ने 6:30 बजे गुफा का पर्दा हटाने के बाद कहे, बाहर धुंध का कब्ज़ा था । विजिब्लिटी लगभग 0 थी । महात्मा के हिसाब से हम लेट शुरू कर रहे थे जबकि मिर्गी के मरीज की माने तो हमें लेट शुरू करना चाहिए था । बाहर सच में मौसम बेहद खराब था और तेज हवा की शुंह-शुंह-शुंह मेरी भी हवा खराब कर रही थी ।

कल्पा के ‘चलो’ बोलने पर सभी धुंध में घुस गए । 10 कदम चलते ही कांडी ने बैग को नीचे फैंक दिया, उसकी साँसे पूरी तरफ फूली हुई थी । उसे देखकर मुझे लगा कि वो बेहोश होने वाला है । मिर्गी के मरीज के शब्द धुंध में से एकदम आये “बीड़ी चाहिए साले को तभी रुका है” । “अब माल को हाथ मत लगा दियो”, बोलकर कल्पा ने कमांड सम्भाली और वापस आकर बैग अपने कन्धों पर ले लिया ।

हाहाकार मच गया तेज हवा के चलने से, आगे बढ़ते हुए घाटी में हवा की डरावनी आवाज भी आने लगी । तेज हवा ने जल्द ही धुंध को काट दिया था । आँखों को पगडण्डी दिखाई देने लगी । सबसे आगे कल्पा चल रहा था, फिर मैं, मेरे पीछे महात्मा, उसके पीछे मिर्गी का मरीज और अंत में गाली देता कांडी । 500 मी. बाद सभी को अमर-बूटी की याद आई जिसने सभी को ब्रेक लगाने पर मजबूर कर दिया ।

कल्पा ने अपनी जेब से बूटी निकाली और उसका पाउडर बनाने के बाद उसने बण्डल से एक बीड़ी निकाली और उसकी गर्दन तोड़कर उसका तम्बाकू बूटी में मिला दिया, लो जी हो गयी अमर-बूटी तैयार । सारी सामग्री और जॉइंट बनाने में मात्र 3  मिनट लगे और उसे सुलगाने में 5 मिनट और 11 माचिस की तिल्लियाँ । मौसम के बदलते मिजाज को देखते हुए मुझे महसूस होने लगा कि अगर 10 मिनट भी यहाँ रुका तो आज मैं कैलाश नहीं पहुंच पाउँगा ।

“ठीक है भाई जी”, बोलकर चारों ने फटी आँखों से मुझे देखा क्योंकि उनके पहले सुट्टे के साथ ही मैंने अकेले आगे बढ़ने का फैसला ‘जॉइंट-ग्रुप’ को सुना दिया था । अकेले चलने में डर तो नहीं था लेकिन बढ़ती धुंध में रास्ते से भटकने का फियर जरुर था । श्रीखंड की तरह यहाँ नीले-पीले रंग के निशान नहीं थे, जो थी वो सिर्फ पत्थरों की ढेरियाँ (Cairn) जिनके सहारे आप टॉप तक पहुंच सकते हो । गुफा से आगे बढ़ते ही सारा रास्ता पत्थरों से टपा हुआ है, ऐसे इलाके को रॉक गार्डन (Rock Garden) कहा जाता है । मौसम खराब हो या साफ़ यहाँ कोई भी रास्ता बड़ी आसानी से भटक सकता है, तो अगर कोई इस यात्रा पर जाये तो हमेशा पत्थरों की ढेरियों का ध्यान रखे ।

धुंध तो बहुत थी लेकिन जल्द ही स्पीड पकड़ी और पार्वती कुण्ड (4550 मी.) 7:40 पर पहुंच गया । यहाँ कुण्ड की तलहटी में बर्फ जमी हुई थी, बढती धुंध की वजह से 2 लड़के वापस जा रहे थे, चार 40-50 साल के लोग मायूस बैठे थे, हवा चल रही थी और ठण्ड से मेरी टांगे कांप रही थी । 2-4 मिनट यहाँ बिताकर जैसे ही मैंने आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ाया तभी चार मायूस लोगों में से एक ने मुझे अपने ग्रुप का गाइड बनने का आर्डर दिया ।

“भाई बात ऐसी है हम यहाँ पिछले 2 घंटे से फंसे है,
धुंध में रास्ते का कोई अता-पता नहीं है,
अब से तू हमारा गाइड है”, बोलकर वो उठने लगे ।
“भाई जी”, कोई भाई जी वाई जी नहीं बस तू हमारे साथ चल, बोलकर उन्होंने मेरी बोलती बंद कर दी ।
“आप लोग मौसम का मिजाज देख ही रहे हो और अगर आपका शरीर साथ नहीं दे रहा तो कतई आगे मत बढ़ो”, धुंध को निगलते हुए मैंने बोला ।
“अजीब आदमी है ये, इतनी दूर से वापस जाने को थोड़ी आये हैं, पैसे ले लियो”, बोलते हुए उन्होंने मेरी आँखों में देखा ।

“पैसे की बात नहीं है सर, मैं सिर्फ इतना कह रहा हूँ “अगर आज मौसम साफ़ नहीं है तो कल फिर से वापस आ सकते हो, आज मलिंग खाटा के लंगर में आराम फरमाओ और कल फिर से आ जाओ, इसमें तो कोई परेशानी नहीं होनी चाहिये”, बोलकर मुझे लगा कि उन्हें आईडिया शायद पसंद आयेगा ।

“तुझे पता भी है कि तू क्या बोल रहा है, 2 दिन लगातार चलकर जैसे-तैसे यहाँ पहुंचे है और तू वापस जाने को बोल रहा है, लगता है तेरा दिमाग खराब हो गया है”, बोलकर एकसाथ चारों मेरी तरफ लपके । शायद उन्हें मेरा आईडिया पसंद नहीं आया ।

“ठीक है अगर आप लोग यही चाहते हो तो ठीक है चलो मेरे पीछे लेकिन एक शर्त है कैलाश तक कोई भी ब्रेक नहीं लेगा”, धुंध से गीली होती ढाढ़ी को साफ़ करते हुए मैंने बोला ।
“ये ठीक है लेकिन धीरे-धीरे ही चलेंगे छोरे”, बोलकर सभी मेरे पीछे हो लिए ।

10 कदम बाद पीछे मुड़कर धुंध में देखा तो कोई नहीं दिखाई दिया, पता नहीं कहाँ रह गये?, आ भी रहे हैं या नहीं?, सोचकर मैं वापस पीछे गया । देखा तो चारों एक बड़े पत्थर पर लगभग बेहोश पड़े हैं, मुझे देखते ही एक जोर से चीखा “इतनी तेज क्यूँ चल रहा है, क्या किसी ने तेरी भैंस खोल ली है ?” ।
“इस तरह तो हममें से कोई भी कैलाश तक नहीं पहुंच पायेगा”, चलो उठो और चलो ।

“ऐसा कर तू चल हम आ रहे हैं धीरे-धीरे”, बोलकर काली जैकेट वाले जनाब ने पानी का घूंट पिया, “और सुन ज्यादा आगे मत जईयो” ।
“जैसी आपकी मर्जी”, बोलकर मैं आगे बढ़ा ही था कि पीछे से आवाज आई ।
“अगर आज हमारे दर्शन नहीं हुए तो तुझे एक रुपया भी नहीं मिलेगा”, बोलकर लाल जर्सी वाले श्रीमान को जोरदार खांसी हुई ।

बेशक उनकी बातों ने दिमाग को गर्म करने की क्षमता थी लेकिन भयंकर रूप से ठन्डे मौसम ने दिमाग को जैसे जमा सा दिया था । आगे बढ़ने से पहले सिर्फ ये ही कह पाया “अगर शरीर और मौसम साथ न दे तो वापस चले जाना, ज्यादा जिद्द अच्छी नहीं होती पहाड़ों में” ।

पत्थर, फिसलन, धुंध और शायद सिर्फ मैं । स्पीड तेज कर दी, कभी जम्प, कभी लॉन्ग जम्प, कभी हाथ तो कभी पैरों का सहारा लेकर जैसे मैं भागने लगा । सारा शरीर पसीना-पसीना हो गया । अब नहीं रुकना है जब तक ऊपर न पहुंच जाऊं, आई मीन ऐट कैलाश । लगभग 30 मिनट बाद काफी सारे लोग दिखाई दिए जिन्होंने मुझे रोक लिया ।

ग्रुप में सबसे पहले सबसे पीछे चलती नंगे पैरों वाली महिला ने पूछा “भईया कैलाश कितना दूर और रह गया है?”, अब तो आप लोग पहुंच ही गये । जहां हम खड़े हैं ये बैकसाइड है कैलाश की अगर मौसम साफ़ होता तो यहीं से दर्शन हो जाते । 10 मिनट बाद आप कैलाश के सामने होंगे । इस वीराने में मेरी बातों ने उनके लिए टोक्सिक का काम किया तभी तो उन्होंने 4-5 जोरदार जयकारें लगा दिए “हर हर महादेव” के, बेशक जयकारों के बाद सभी को कुछ पलों का ब्रेक लेना पड़ा अपनी-अपनी साँसों को पुन: नियंत्रित करने के लिए ।

कैलाश के इस आँगन में पत्थर ही पत्थर बिखरे पड़े हैं, ऊपर से अब खड़ी चढ़ाई हो शुरू हो गई । “अब मंजिल दूर नहीं”, बोलकर मैंने कैलाश की ओर दौड़ लगायी ।

सुबह के 8:55 और मैं किन्नर कैलाश (4850 मी.) के सामने खड़ा था, कुछ महसूस नहीं हो रहा था सिवाय ठण्ड के । हवा बहुत तेज थी और उससे ज्यादा धुंध । पीछे आते ग्रुप के कुछ लोग यहाँ पहले ही पहुंचे हुए थे । कुछ फोटो खींच रहे थे और सुध-बुध खोकर आपस में बात कर थे कि “यहाँ तक आ तो गये हैं लेकिन अब वापस कैसे जायेंगे ?” । “भाई इससे मुश्किल यात्रा मैंने आजतक नहीं करी, सुबह 2:15 के चले-चले 8:45 पर पहुंचे हैं यहाँ”, बोलकर एक ने अपने दुःख मुझसे सांझा किया । उनकी दुःखभरी दास्तान सुनकर मुझे एक गीत के बोल याद आ गये :-

“दुनिया में कितना गम है,
मेरा गम कितना कम है” ।

भला मैं उन्हें किस मुंह से बताता कि मैं सुबह 6:25 पर गुफा से चलकर यहाँ 8:55 पर पहुंचा हूँ, लेकिन इंसानियत के नाते मैंने जो कहा उसे सुनने के बाद उन्हें इंसानियत पर पुन: विश्वास हो गया होगा ।

“आप लोगों ने कमाल कर दिया”, मैंने कहा ।
“सही कहा भाई”, उन्होंने कहा ।

फटाफट मैंने अपना काम करना शुरू किया, जूते उतारकर दर्शन किये, कुछ फोटो खींचे और सुध-बुध खोये लोगों से अपना भी फोटो खिंचवा लिया, जिसके बदले में मैंने उन्हें धन्यवाद के साथ मुस्कराहट दी और उन्होंने मेरी ओर आँखे टेरी । मौसम खराब के बावजूद मैं यहाँ कुछ समय बिताना चाहता था, क्या पता मौसम मेहरबान हो जाये ।

“ओ ढाढ़ी वाले भईया तू तो बड़ा झूटा निकला”, बोलते हुए नंगे पैरों वाली महिला मुझपर टूट पड़ी । “यहाँ तक 10 मिनट का रास्ता नहीं है बल्कि 40 मिनट का रास्ता है, धार्मिक यात्रा पर आकर कम-से-कम झूट तो नहीं बोलना चाहिए तुझको” ।

मैं उनकी आँखों में बिल्कुल नहीं देख रहा था क्योंकि मैं जानता था वहां मेरे लिए तेल के गर्म कढ़ाये आग पर रख दिए गये हैं और अगर मैंने कुछ बोला तो मेरे बुरे कर्मों का एम्. एस. एक्सेल जल्द ही ओपन कर दिया जायेगा जिसके तहत कैलाश पर मेरे गर्म पकोड़े बनना निश्चित है । चुप रहकर मैंने अपने पापों की गिनती करी जो नंगे पैरों वाली महिला ने एक खडूस अध्यापक की तरह मुझे रटवाई । “अब चुप क्यूँ खड़ा है कुछ बोल क्यूँ नहीं रहा है ?”, बोलकर उन्होंने तेल को चेक किया कि गर्म हुआ है या नहीं ।

1 घंटा 5 मिनट यहाँ बिताकर मैंने 10 बजे बेक गियर लगा लिया । “अरे जाने से पहले इतना तो बता दे कि वापस जाने में कितना समय लगेगा?”, “आप लोगों को शायद 2-3 घंटे लग जायेंगे मलिंग खाटा तक पहुंचने में” बोलकर मैंने नंगे पैरों वाली महिला की तरफ देखा । उनकी आँखों में देखते ही मेरा तो “उई माँ” निकल गया क्योंकि वहाँ तेल खौलने लगा था ।

धुंध के पीछे से आती आवाजों ने मुझे धीमा कर दिया था, ये आवाज किसी और की नहीं बल्कि गुफा वाले साथियों की थी । “अरे आप तो वापस भी आ गये”, कांडी बोलकर अपनी जेबों को टटोलने लगा । “हां भाई, अच्छा चलता हूँ दुआओं में याद रखना”, बोलकर मुझे कुछ ज्यादा ही फ़िल्मी होने का एहसास हुआ और सारा फ़िल्मी बुखार तब उतर गया जब कांडी ने मुझसे माचिस मांगी । मैंने मूंछो के पीछे से जवाब ‘नहीं’ में दिया । मिर्गी के मरीज के हिसाब से अगर कांडी का नार्को टेस्ट कराया जाये तो ये सिद्ध हो जायेगा कि वो 2 में से एक माचिस गुफा में ही छोड़ आया है । एक बार फिर से मिर्गी का मरीज बिना बीड़ी के चलती इस यात्रा को अपने जीवन की आखिरी यात्रा समझने लगा, उन सबकी लाचारी देखते हुए मुझे भी ऐसा ही प्रतीत हुआ ।

उतरने में मैं चला नहीं बल्कि दौड़ा और दौड़ ने मुझे पार्वती कुण्ड 11 बजे और गुफा 12:24 पर पहुंचाया । वापसी में मुझे कोई नहीं मिला सिवाय 4 मायूस लोगों के जो मुझे गुफा से बस थोड़ा ही पीछे मिले । मिलते ही उन्होंने मुझे कई उपाधियों से सम्मानित कर डाला, जैसे कि मैं मतलबी हूँ, धौकेबाज हूँ, और-तो-और एक ने तो इंग्लिश में मुझे ‘सेल्फिश’ तक कह डाला । काली जैकेट वाले साहब ने एक नया आरोप लगाया कि “तेरी वजह से हमे बिना दर्शन के ही वापस जाना पड़ रहा है” । खुद के लिए इतने अनमोल शब्द एकसाथ सुनने का मतलब था अपने आप को ‘नर्वस ब्रेकडाउन’ के हवाले कर देना । मनोचिकित्सक की गन्दी कुर्सी का ख्याल आते ही लातें अपने-आप गुफा की ओर दौड़ पड़ी ।

अपनी 5 स्टार गुफा में पहुंचकर मैंने बैग को पैक किया, थोड़ा पानी पिया और थोड़े बिस्कुट खाएं । बर्तनों के पास ही कांडी द्वारा छोड़ी माचिस दिखाई दी जिसे देखकर मैं सिर्फ इतना ही कह पाया “पुअर कांडी” । ‘गाली-ग्रुप’ के लिए मैं बिस्कुट, ग्लूकोस, लड्डू और पानी से भरी बोतल गुफा में छोड़ आया ।

दोपहर 1 बजे गुफा को छोड़ा, इस उम्मीद में कि आज की रात मलिंग खाटा में बिताऊंगा । स्पीड अच्छी रही और अकेली चढ़ाई को पार करके लंगर हाल तक पहुंचने में सिर्फ 1 घंटे का समय लगा । चाय और खिचड़ी खाते-खाते मैंने नंगे पैरों वाली महिला और 4 मायूस अंकलों के श्राप को याद किया जो उन्होंने कुछ ही देर पहले मुझे दिए थे लेकिन भला हो वोहरा जी का जिन्होंने मेरे सफल कैलाश दर्शन पर अपने मुक्तिदायक शब्द कहकर मुझे ‘पापमुक्त’ कर दिया ।

मलिंग खाटा दोपहर 2:30 बजे छोड़ा, मेरे इरादा तो नहीं था आज पोवारी जाने का लेकिन समझ ही नहीं आया कि किस में ज्यादा एनर्जी थी वोहरा जी की तारीफों में या उनकी खिचड़ी में । लाला की दूकान तक मैंने वोहरा जी की तारीफों को क्रेडिट दिया ।
जोरकांदेन धुंध में खो गया था, ट्री लाइन अस्तित्व में आ गई थी, पसीना सूख गया था और पंजे और तेज हो गये थे । मुझे दौड़ना बिल्कुल भी पसंद नहीं है लेकिन कभी-कभी उतराई अपने जाल में फंसा ही लेती है । यह एक तेज और आक्रामक दौड़ थी पोवारी तक । मलिंग खाटा से नॉन-स्टॉप 'ट्रेल-रनिंग' के सहारे तंगलिंग गाँव में 3:25 बजे कदम रखा जहां से होते हुए सतलुज पर बने झूले को पार करके पोवारी लंगर में दोपहर 3:45 पर प्रवेश किया ।

लंगर में खड़े होकर पाया कि मेरे पैर काँप रहे थे, काँप भी ऐसे रहे थे मानो पैरों में भूकंप आ रहा हो । जूते उतारकर तुरंत ही मैं बैठ गया और अंतिम क्रेडिट मलिंग खाटा में खाई खिचड़ी को दिया ।

मुंह-हाथ धोकर लंगर ग्रहण किया और फिर कल सुबह तक के लिए खुद को आराम के हवाले कर दिया । लेटे-लेटे सोचने लगा कि “कौशिश करूंगा इस यात्रा को अगली बार एक ही दिन में पूरी करूँ, और कभी एक रात कैलाश पर बिताऊं” ।

आज गुफा से सुबह 6:25 पर चलकर किन्नर कैलाश के दर्शन 8:55 पर किये, वहां से वापस पोवारी 3:55 पर पहुंचा । आज के सम्पूर्ण ट्रेक की दूरी करीबन 19-20 किमी. रही । आज का खर्चा जीरो रहा और अब तक (28 जुलाई 2017) इस यात्रा पर शुरू से 1087 रूपये खर्च हो चुके हैं ।

अगले दिन सुबह आराम से उठकर मैंने पोवारी से सीधा शिमला की बस पकड़ी जिसमें 250 रु. का किराया लगा । ज्यूरी में जब बस रुकी तो 30 रु. के अति स्वादिष्ट पराठे खाये । शिमला शाम 05:15 बजे पहुंचा जहां पहुंचकर 50 रु. का खाना खाया । शाम 06:20 पर हिमाचल रोडवेज़ चल पड़ी इसमें 420 र. का भुगतान करना पड़ा । दिल्ली बस ने अगले दिन तडके 04:40 पर उतारा जहां से 20 रु. हरियाणा रोडवेज़ को चुकाकर मैं 05:05 पर अपने घर फरीदाबाद पहुंचा ।
इस यात्रा पर 10 दिनों में 1877 रु. का खर्चा हुआ जिसकी तालिका नीचे दे रहा हूँ आप सभी के रेफ़रेंस के लिए ।

आशा करता हूँ आपको किन्नर कैलाश यात्रा का तीसरा भाग पसंद आया होगा । आपके सुझावों के इंतजार रहेगा तब तक हर हर महादेव ।

पार्वती कुण्ड (4550 मी.)

किन्नर कैलाश खराब मौसम के बीच 

सुबह 9 बजे होते दर्शन यात्रियों को 

श्री किन्नर कैलाश शिवलिंग अपने चर्म पर 

समुन्द्र तल से ऊँचाई 4850 मी.

दूरी और ऊँचाई बताता किन्नर कैलाश यात्रा का नक्शा

यात्रा का खर्चा दर्शाती तालिका


Comments

  1. बदतमीज लोगों का न गाइड बनो ना दोस्त बनो, दोनों ही सूरत खतरनाक होती है।
    वापसी तो सुपरमैन वाली रही। फिसले कितनी बार, ऊई माँ, अरे, बाप रे, जैसा कुछ हुआ तो होगा, हा हा,
    मुझे किसी की ट्रैकिंग पसन्द है तो रोहित कल्याणा की।

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    1. उस वक्त तो स्थिति सच में खतरनाक ही हो गई थी। हर बार आपके कमेन्ट मुझे सुधार की ओर ले जा रहें हैं। धन्यवाद और तहेदिल से शुभकामनाएं सन्दीप भाई।

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  2. भाई कमाल ही करदी आपने तो।

    ईतनी तेजी से नीचे उतरे। जबरदस्त ऊर्जा है आपमे।
    1087 के बाद के खर्चे का क्या हुआ जी, उस पर भी प्रकाश डालने की कृपा करे

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    1. आपके कमेन्ट के बाद मैंने थोड़ी और जानकारी इस पोस्ट में डाल दी है और साथ में एक खर्चे की तालिका भी अपलोड कर दी है । आशा करता हूँ रेफरेंस के तौर पर काम आयेगी ।

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