1877 रू. में 2 कैलाश दर्शन : पोवारी-गुफा (2 Kailash visited in just 1877 rs. : Powari - Gufa)

27 जुलाई 2017
“सतलुज नदी को लगभग 40 फुट ऊँचे टोकरीनुमा झूले से पार करके किन्नर कैलाश यात्रा के आखिरी गाँव ‘तंगलिंग’ में प्रवेश होता है जहां विश्व-प्रसिद्ध किन्नौरी सुनहरी सेबों की झलक दिखाई देती है । कई किमी. ऊँची चढ़ाई चढ़कर आप वहां पहुंचते हो जहां हरे-भरे ऊँचे दरख्तों का अस्तित्व रंग-बिरंगे फूलों की खूबसूरती में विलीन हो जाता है और जो कमी रह जाती है उसे यहाँ से दिखता जोरकांदेन पर्वत (6473 मी.) पूरी कर देता है । अनकही सुन्दरता को समेटे यह यात्रा आपको 4000 मी. से भी ऊपर ले जाती है जहां दर्शन होते हैं स्वर्ग के । स्वागत है धरती के स्वर्ग किन्नर कैलाश में” ।

मलिंग खाटा से दिखाई देता है किन्नर कैलाश पर्वत के दायीं तरफ विशाल बर्फ से ढका पहाड़ 

सुबह जब आँख खुली तब शायद 5 बजे थे, उजाले के साथ चारों तरफ चहल-पहल शुरू हो चुकी थी । कोई बैग पैक कर रहा था कोई दांत साफ़ कर रहा था । मैंने भी बिना देर किये ब्रश किया और फ्रेश होते ही तैयार हो गया  । मुझे पैरों में बड़ी-भारी ऊर्जा महसूस हो रही थी क्योंकि आज जूते जो सूख गये थे । #थैंक्स_टू_धूऊऊप

मैं बिना कुछ खाए यात्रा शुरू नहीं करना चाहता था इसलिए मुझे नाश्ता लगने तक लंगर में ही इंतजार करना पड़ा । इंतजार के दौरान दिल्ली वाले यात्री ने मुझे गर्म-पट्टी और बाम सौंपी जिसकी डिलीवरी मुझे उनकी धर्मपत्नी को करनी थी जोकि कल ही यात्रा के लिए निकली थीं । लंगर वालों ने सभी की तरह मेरा भी पंजीकरण कर लिया और 20 रु. की ग्रीन-टैक्स पर्ची भी काटी । लंगर वालों ने मुझे एक छोटा बैग दिया जिसको मुझे मलिंग खाटा डिलीवर करना था और अंत में यात्रा के लिए सभी के साथ-साथ मुझे भी सूखी खाद्य-सामग्री मिली । #टू_मच_डिलीवरी

नाश्ता साढ़े छह बजे लगा जिसे करते ही बैग को कन्धों के हवाले कर दिया । घाटी के इस हिस्से में मौसम सुहाना बना हुआ था, सूरज की किरणों ने यात्रियों का स्वागत किया । श्रीखंड यात्रा पर तो लगातार 4 दिन बारिश में भीगकर मेरी हालत ही खराब हो गई थी आशा करता हूँ यहाँ ऐसा नहीं होगा । सुबह 6:45 पर मैंने पोवारी छोड़ा, और जब आगे पीछे मुड़कर देखा तो कोई भी यात्री नहीं दिखाई दिया । मुझे किसी का साथ चाहिए था क्योंकि सतलुज पर लगे झूले के इस्तेमाल के लिए कम-से-कम 2 लोगों का होना अनिवार्य है क्योंकि पहला झूले में बैठकर सतलुज को पार करेगा जबकि दूसरा झूले और पुली से जुड़ी रस्सी को खींचकर अपने साथी को पार पहुँचाने में मदद करेगा ।

बिना किसी के साथ के ही मैं झूले पर पहुंच गया जहां शुक्र है स्थानीय लोग यात्रियों की मदद कर रहे थे सभी को सतलुज पार कराने में । वैसे तो एक बार में ज्यादा-से-ज्यादा 2 लोग बैठ सकते हैं लेकिन किसी और के वहां न होने के कारण उन्होंने मुझे अकेले ही खौलती नदी को हवा में टंगी टोकरीनुमा झूले से पार करा दिया ।
लंगर से नदी पार करने में 15 मिनट लग गये और नदी पार करते ही मेरा गोल्डन सेबों के बागों में प्रवेश हो गया, जहां एक-एक पेड़ हजारों सेबों का आश्रय बना हुआ दिखाई देता है । यह गाँव 'तंगलिंग' है जहां यात्रियों के भोजन और रहने की व्यव्स्था भरपूर मात्रा में है । यहाँ से उस जगह तक रास्ता पक्का बना हुआ है जहां इस यात्रा का आखिरी ढाबा स्थित है और तो और इस ढ़ाबे का नाम भी ‘आखिरी ढाबा’ ही है । यह ढाबा तक़रीबन एक या डेढ़ किमी. दूर होगा सतलुज से । ‘आखिरी ढ़ाबे’ से लगभग 50 मी. आगे इस यात्रा का आखिरी पानी का सोर्स आता है जहां सभी यात्री ताजा बहते पानी को पी और अपनी बोतलों में भर सकते हैं, मैंने भी यहाँ 2 घूंट पानी पिया और आगे बढ़ गया । यहाँ के बाद पानी सीधा ‘मलिंग खाटा’ ही मिलेगा ।

इस नाले को पार करते ही यात्रा खड़ी चढ़ाई पर शुरू हो जाती है, श्रीखंड की तरह इस चढ़ाई को डंडा-धार कहना गलत न होगा । नाले से लगभग 30 फुट ऊपर तक पक्की सीढ़ियाँ बनी है वहाँ के बाद कच्चा रास्ता शुरू होता है जो आपको एकदम टॉप तक ले जाता है ।

रास्ते पर श्रीखंड की तरह निशान तो नहीं लगे हैं परन्तु यात्रा का ‘आधिकारिक रास्ता’ साफ़ तौर पर चौड़ी पगडण्डी के रूप में पहचाना जा सकता है । हो सकता है पहली बार दर्शन करने जा रहे यात्री को रास्ता समझने में थोड़ी उलझन महसूस हो क्योंकि स्थानीय निवासियों की तेज चाल ने इस रास्ते पर कई शार्टकट रास्ते बना दिए है । अगर कभी गलती से आप शार्टकट ले भी लेते हैं तो घबराएँ नहीं क्योंकि ऊपर बढ़ते हुए सभी रास्ते एक ही स्थान पर मिल जाते हैं ।

सारा रास्ता चढ़ाई और पेड़ों से भरा है । यहाँ कई प्रकार के पेड़ है जैसे चीड़, देवदार और बाँझ आदि । कई बार आगे बढ़ते हुए घने पेड़ों की मेहरबानी के बीच बनी खिड़की से मुझे नीचे कई जगहों का साफ़-साफ़ नज़ारा दिखाई दिया, जिसमें मैंने ‘शोंगथोंग पुल, लंगर (पोवारी), रिकोंगपियो और कल्पा को बड़ी आसानी से पहचान लिया । यह नज़ारा बहुत खुबसूरत था ।

अभी तक सबकुछ एकदम ठीक चल रहा था, दोनों पैर बढ़िया काम कर थे, कंधे ठीक थे बैग के वजन से, कहीं कोई दर्द नहीं था, दिमाग भी एकदम सेंटर में था, पूरे बदन में कहीं कोई थकान महसूस नहीं हो रही थी, और सबसे अच्छी बात मौसम भी अच्छा था, दिलकश और सुहावना ।

9 बज चुके थे और मैं बिना रेस्ट के नॉन-स्टॉप चल रहा था लेकिन एक नेपाली को देखकर मैंने अपने कदम रोक लिए । वह इंसान नीले रंग के ड्राम को ऊपर ले जा रहा था और अभी बीड़ी पी रहा था । नीले ड्राम को देखकर मैंने सोचा कि शायद ये इसे मलिंग खाटा ले जा रहा होगा पानी स्टोर करने के लिए तो मैंने यूँ ही मजाक में बोल दिया “इस खाली ड्राम को कहां ले जा रहे हो दाई”, “लाला के ढ़ाबे पर”, बोलकर वो फिर से बीड़ी पीने लगा और एकदम से बोला “ये खाली नहीं है” । क्या खाली नहीं है ये सुनकर तो मेरे तोते ही उड़ गये मैंने तुरंत उस नीले जायंट ड्राम को हिलाकर देखा, सच बताऊँ मैं उसे थोड़ा ही हिला पाया । “क्या भरकर ले जा रहे हो इसमें”, चौंककर मैंने पूछा । शायद मेरा सवाल उसे इतना अजीब लगा कि उसने जवाब बोला ही नहीं बल्कि ड्राम का ढक्कन खोलकर उसके भीतर रखे सामान को दिखाकर मुझे ‘हे भगवान’ बोलने पर मजबूर कर दिया । उस ड्राम में कोल्डड्रिंक, मिनरल वाटर की बोतल, मैग्गी के पैकेट, बिस्कुट के पैकेट और कुछ बर्तन भरे थे ।

ड्राम के भीतर का नज़ारा देखकर तो मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई अच्छा ये तो बता दो कि “इसका वजन कितना है”, एक बार को तो मुझे लगा की इस बार भी बतायेगा नहीं बल्कि ड्राम को मेरे सिर पर रख देगा ताकि मुझे खुद ही जवाब मिल जाएँ । “40 किलो है सर”, बोलकर उसने अपना कान खुजलाया । “क्या कहा 40 किलो बाप रे”, और इसके कितने पैसे मिलने वाले हैं आपको । “1000 रूपये देगा लाला, कल उसने बोला था एक ड्राम और 10-15 किलो सामान दुकान पर पहुंचाना है लेकिन सुबह उसने गड़बड़ किया और ड्राम में ज्यादा सामान भर दिया । आज-आज जा रहा हूँ फिर इसका काम नहीं करूंगा”, बोलकर नेपाली हल्क (Hulk) ने ड्राम को अपने सिर से उठा लिया ।

आगे निकलकर अचानक मुझे याद आया कि 2015 में जब आया था तब तो कोई ढाबा नहीं था तो फिर से लाला का ढाबा कहां से आ गया, पीछे मुड़कर जोर से चिल्लाकर मैंने नेपाली हल्क (Hulk) से आखिरी सवाल पूछा “अच्छा ये तो बता दो कि ये लाला की दुकान आखिर है कहां?”, “2-3 किमी. ऊपर है”, बोलकर उसने गहरी सांस ली ।

लाला के ढ़ाबे के इंतज़ार में तेजी से ऊपर चढ़ने लगा और थोड़ा ज्यादा पसीना बहाकर नीली तिरपाल से ढके लाला के ढ़ाबे पर पहुंच गया जहां दर्शन करके लौटते यात्री पराठे और मैग्गी का स्वाद ले रहे थे । ढ़ाबे में मुझे कोई लाला जैसा तो नहीं दिखा इसलिए बिना रुके ही मैं आगे बढ़ गया ।
यह जगह धार के दायीं तरफ है और इस तरफ पेड़ कम होने की वजह से अलौकिक दृश्य दिखाई देता है 6473 मी. ऊँचे पर्वत का जिसका नाम जोरकांदेन है । जब मैंने यह नज़ारा देखा तब इस विशाल पर्वत का शिखर आसमान से बात कर रहा था । हर 1 कदम के साथ मैं इसे 2 बार देखता इस आस में कि काश कभी मौका मिले इसके शिखर पर होने का ।

आगे बढ़ा ही था कि मुझे अपनी पहली डिलीवरी करनी पड़ी क्योंकि गर्म-पट्टी और बाम की मालकिन नीचे उतर रही थी । उन्हें उनका सामान लौटाकर मैं फिर से जोरकांदेन के प्यार में खो गया । आधा किमी. आगे चला ही होऊंगा कि सामने से आते हुए एक लड़के ने मुझे रोककर सवाल किया “क्या आप रोहित कल्याणा हैं ?”, “हाँ जी, माफ़ करना मैंने पहचाना नहीं”, “मेरा नाम अंशुमन मिश्रा है और हम फेसबुक पर दोस्त है” । तो इस तरह सुगम मिलन हुआ फेसबुक मित्र से । #फेसबुक_टू_कैलाश

मंलिग खाटा अब सिर्फ 1.25 किमी. दूर रह गया था । सुबह शुरू हुई चढ़ाई के खत्म होने का इंतजार होना चाहिये था लेकिन दायीं तरफ दिखते स्वर्ग से नजारे ने इसे जारी रखने का आदेश दिया । 30 मिनट बाद दोपहर के 12 बज गये और लम्बी चढ़ाई के बाद मैंने मलिंग खाटा में लगे लंगर में कदम रखा ।
स्थानीय भाषा में इस स्थान को मलिंग खाटा बुलाया जाता है लेकिन आजकल इस स्थान को गणेश पार्क या आशिकी बाग़ कहा जाता है । आशा करता हूँ मेरी तरह अब से आप लोग भी इस जगह को सही नाम से पुकारना शुरू करेंगे । #थैंक्स_टू_तरुण_गोएल_फॉर_कोर्रेक्टिंग_अस

मलिंग खाटा (3720 मी.) एक बुग्याल है जहां चारों तरफ हरी घास की चादर बिछी है जिसपर रंग-बिरंगे फूलों की चित्रकारी मन मोह लेती है । यह स्थान पोवारी से लगभग 8.5 किमी. दूर है । आपको यहाँ से रिकोंगपियो, कल्पा, रिब्बा के साथ-साथ किन्नर कैलाश पर्वत (6050 मी.), जोरकांदेन पर्वत (6473 मी.), हरन पास (3764 मी.), रुनंग पास (4420 मी.) के दर्शन भी हो सकते हैं अगर मौसम साफ़ रहे तो । यहाँ एक फारेस्ट गेस्ट हाउस है जो अब पूरी निष्ठा से यात्रियों के लिए सराय का काम कर रहा है । इस साल से यहाँ एक और बिल्डिंग को चालू किया गया है जिसे लंगर वाले यात्रियों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं । इस धर्मशाला में रहने और खाने के लिए खाने की उचित व्यवस्था है ।

15 मिनट में यहाँ चाय और खिचड़ी खाकर खुद को वापस एनर्जी के हवाले कर दिया । अभी तक का सफ़र भी अच्छा रहा और मौसम भी । यहाँ से आगे का रास्ता दूर तक खड़ी चढ़ाई के रूप में दिखाई देता है । अगर थके हों तो हो सकता है यह रास्ता आपको आज यहीं रुकने पर विवश कर दे ।

ऊपर जाने के मुख्य रास्ते को छोड़कर मैं सीधा चढ़ा और बिना रुके 4065 मी. पर पहुंचा जहां से गुफा साफ़-साफ़ दिखाई देनी शुरू हो जाती है । यहाँ से रास्ता एकदम नीचे उतरता है और आपको सीधा स्नो-ब्रिज पर ले जाता है जहां से स्नो-ब्रिज को पार करना थोड़ा ट्रिकी हो जाता है फिसलन की वजह से । लगभग 100 मी. आगे जाते ही गुफा पहुंच जाते है । ध्यान रहे इस स्नो-ब्रिज को पार करने के साथ-साथ अपनी पानी की बोतल अवश्य भर ले नहीं तो हो सकता है आपको बाद में पछताना पड़े ।

गुफा कोई सच की गुफा नहीं है जहां कोई योगी-महात्मा रहता हो बल्कि बड़े बोल्डरों के नीचे बचे खाली स्थान को गुफा कहा जाता है और इसी खाली स्थान को रात बिताने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । यहाँ ऐसी बहुत सारी गुफाएं हैं जहां आपको रात बिताने के लिए जगह मिल जाएगी । कभी-कभी भारी मात्रा में यात्रियों के पहुंचने पर यहाँ जगह मिलने में परेशानी हो जाती है लेकिन ये सिर्फ तब होता है जब आप देर शाम यहाँ पहुंचते हो । दोपहर 2-3 बजे पहुंचकर आप मनचाही गुफा में डेरा जमा सकते हो ।

तिरपाल और बर्तनों की उपलब्धता ने कुछ गुफाओं की रेटिंग 3 स्टार तक पहुंचा दी है । दोपहर 1:30 पर जिस गुफा के सामने पहुंचा वहां गुजराती ग्रुप पिछले 3 दिन से बैठा था । यह गुफा बालकनी तक हाउसफुल थी जिस वजह से मुझे थोड़ा और ऊपर जाना पड़ा जहां एक 3 स्टार गुफा सही अवस्था में मिल गयी । अन्दर कोई नहीं था बाहर ठंडा बहुत था । 10-15 मिनट शरीर को टेड़ा-मेडा करके हल्का व्यायाम किया । शायद ये गुफा 5 स्टार गुफा थी जहां मुझे एक पानी की पूरी भरी हुई बोतल और 8 चपाती मिल गयी । 2 चपाती, थोड़ा लंगर का प्रसाद और कुछ घूंट पानी ने गुफा में साधु का एहसास करा दिया ।

3 घंटे हो गये थे शाही गुफा में लेटे-लेटे और बाहर मौसम ने पल्टी मारनी शुरू कर दी थी । बादलों ने इस पूरे ऐरिये को सैनिकों की तरह घेर लिया था । बेशक ये कोई युद्ध नहीं था लेकिन इन्होंने मुझपर हमला बोल दिया था गुफा में घुसकर । वक़्त आ गया था इस हमले का जवाब देने का स्लीपिंग बैग में घुसकर, हिम्मत है तो स्लीपिंग बैग में आओ कायरों । और आख़िरकार युद्ध खत्म हुआ जब बादलों ने स्लीपिंग बैग को ऊपर से भिगो दिया ।

शाम 5 बजे बाहर कोहरे से गूंजती कुछ आवाज आई ।

“कोई है गुफा में”,
“मैं हूँ”,
“कौन मैं?, कोई भालू-वालू तो नहीं है”, कोहरे से आवाज आई
“दिखता भालू हूँ लेकिन हूँ इंसान”, बोलकर मैंने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा ।
“जगह है गुफा में?”,
“थोड़ी बची है जल्दी आकर कब्ज़ा कर लो”, बोलकर मैं बैठ गया ।
“चलो सालों जल्दी यहाँ भी जगह नहीं मिली तो मरना बाहर”,
घने कोहरे ने एक-एक करके 4 लड़कों को मेरे सामने पेश किया ।
चारों ने भीतर आते ही एक सुर में बोला,
“निकाल भाई ठण्ड से गाXX फट रही है”,
“गाxडू तुझे ही तो दी थी, मेरे पास नहीं है”,
“मैं तेरी गाXड मार लूँगा, चूxये ग्लेशियर पर मैंने तुझे ही दी थी”,
“भोXडी के मेरे पास नहीं है, अपनी जेब चेक कर”,

एक लड़का पागलों की तरह अपने बैग को चेक करने लगा, मुझे तो लगा कि वो बैग की सिलाई भी तार–तार कर देगा ।

“लXड है इसमें, मैं टोपा तेरे मुंह में दे दूंगा, चूxये अपने बैग में चेक कर”,
“एक तो ठण्ड ने गाXड फाड़ रखी है ऊपर से इस बीड़ी को भी बहनxXद अभी खोना था”, बोलकर ये बन्दा भी बैग को ट्रेंड डॉग की तरह ढूंढने लगा । कुछ नहीं मिलने पर इसने इस बार शालीन शब्दों का इतेमाल किया और बोला,
“मैं तेरी माँ xxद दूंगा बहन के लxडे”, वो पागल हो गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा ।
“मादरचोxदो मुझे बीड़ी दे दो, मुझे बीड़ी दे दो नहीं तो एक-एक की गाxड मार लूँगा”, उसकी हालत देखकर मुझे लगा कि उसे जैसे मिर्गी का दौरा पड़ा हो । अब तो मुझे उसपर दया आने लगी थी और महात्मा बने बैठे बाकी 2 को बोला कि “आप लोग भी क्यूँ नहीं अपनी जेबें और बैग चेक कर लो ?”, बोलते हुए बेशक मुझे अपनी ओर आने बाले शालीन शब्दों का डर था ।

उनमें से जैसे ही एक ने अपनी जेब में हाथ डाला वैसे ही 2 बीड़ी के बण्डल और लाइटर बाहर आ गये ।
“ये ले चूxये”, मिर्गी के शिकार ने उसे एक लात मारी और बीड़ी छीन ली ।
“साले कांडी मुझे पहले से ही पता था कि तेरी ही गाxड में दर्द हुआ होगा”, बोलकर मिर्गी शिकार ने बीड़ी का सारा मसाला निकलना शुरू कर दिया । नासा और इसरो से भी सस्ती मिसाईल बनाई जाने लगी जो सभी को एक साथ मंगल पर ले जाएगी ।

बीड़ी ने जलते ही सारे अव्यवस्थित माहौल को सुव्यवस्थित और कूल कर दिया था । इस समय कोई इन्हें देख ले तो इनके ब्रदरहुड पर किताब लिख दे । #भाईगिरी_और_बीड़ी

शाम के 6 बज गये और वातावरण ठण्डे से गर्म हो गया । थैंक्स तो सुलगते जॉइंट्स ।
“रिंग रिंग बीप बीप रिंग रिंग बीप बीप”, 2 में से एक महात्मा का फ़ोन बजा ।
“ओए शशशह्ह्ह चुप हो जाओ सालों बापू का फ़ोन आया है”, बोलकर महात्मा ने हरा बटन दबाया ।
“हेल्लो डैडी जी”, (बैकग्राउंड से : फट गयी साले की)

“हाँ जी डैडी जी गुफा पहुंच गये है कल दर्शन करके नीचे आ जायेंगे, नहीं डैडी जी दोस्त हैं साथ में और यहाँ एक भईया भी है, ठीक है डैडी जी, जैसे ही महात्मा ने फ़ोन रखा वैसे ही उसने मिर्गी के शिकार की माँ-बहन एक कर दी क्योंकि वो चलती कॉल के दौरान ही पीछे से अपनी टिप्पणियों की झड़ी लगा रहा था ।
इनमें से एक लड़का कल्पा का रहने वाला था जिसनें फरमान सुनाया कि मिर्गी का शिकार और कांडी ग्लेशियर पर पानी लेने जायेंगे, मैं और महात्मा लकड़ी इकट्ठे करेंगे ।

“गाxड मरा अपनी, मैं कहीं नहीं जाने वाला”, बोलकर मिर्गी के शिकार ने अपने बैग से कम्बल निकाल लिया और लेट गया । कल्पा ने भी बिल्कुल रॉ शब्दों का इस्तेमाल किया और खुद भी लेट गया । दोनों को पसरते देख महात्मा और कांडी भी उनके ही कम्बल में घुस गये ।
10 मिनट गुफा में लगातार गालियों का स्वर गूंजता रहा और एकदम से वहां शान्ति छा गयी । सबके सोने के बाद मेरे कानों को निर्वाण प्राप्त हुआ लेकिन इसकी वैलिडिटी सिर्फ 20 मिनट तक रही । 20 मिनट बाद 15 मिनट तक भीषण युद्ध हुआ चारों के बीच ।

पहला मुद्दा रहा कि “कोई भी पानी और लकड़ी लेने नहीं जाना चाहता था”, जब बहुत सारी गाली-गलौच और फिर सबने इस फरमान के खिलाफ अपनी सहमती रखी ।
दूसरा मुद्दा रहा कि “मैं पानी नहीं लाऊंगा लकड़ी लाऊंगा या मैं लकड़ी नहीं पानी लाऊंगा”, एक बार फिर सभी ने अपने घर की औरतों को गुफा पर याद किया और बहुत सारे शब्द उनके सम्मान में कहे ।

अधिवेशन पूरा हुआ और अंतिम फैसला यह रहा कि मिर्गी का शिकार और महात्मा पानी लेने जायेंगे जबकि कल्पा और कांडी लकड़ी लेने । कल्पा और कांडी फैसले के तुरंत बाद ही कूच कर गये जबकि मिर्गी के शिकार और महात्मा ने कदम वापस कम्बल में खींच लिए और जॉइंट मेकिंग में व्यस्त हो गये । उनकी फिलोस्फी माने तो जॉइंट ही उन्हें पानी  तक पहुंचाएगा नहीं तो ग्लेशियर से दोनों की लाशें ही वापस लानी पड़ेगी । आखिरी कश के बाद दोनों ने कम्बल में घुसकर फ्लोस्फी को पक्का कर दिया ।

लकड़ी लाने के पश्चात कल्पा और कांडी की वजह से गुफा तीसरे विश्व युद्ध की साक्षी बनी । टीम 'कांडी-कल्पा एकादश ने सोते दुश्मन पर बेरहम हमला किया । कुछ लातें कमर और पेट के अलावा पुरुषार्थ पर भी पड़ी जिसने 'कांडी-कल्प एकादश' को सीधे 6 पॉइंट्स दिलाये । मेजबान टीम 'मिर्गी महात्मा विश्व इलेवन' ने एक ही शॉट में 10 पॉइंट्स अपने नाम कर लिए जब उन्होंने अपने बचाव में सिगरेट भरकर पीने का प्रस्ताव रखा जिसे विरोधी टीम ने सहर्ष स्वीकार कर लिया ।

एक सिगरेट के बाद भी मुद्दा जीवित था, बेशक अब युद्ध रुक चूका था लेकिन पानी लेने जाते-जाते मेजबान टीम ने विरोधी टीम को गन्दी गालियाँ दी और बीच वाली उंगली भी दिखाई । गालियों को टीम कांडी-कल्पा बर्दास्त कर सकती थी परन्तु अपने साथ बीड़ी ले जाने की हरकत को कैसे माफ़ किया जा सकता था । पिछवाडा लाल कर दिया जायेगा बोलकर दोनों कम्बल में बैठ गये ।
मैंने भारतीय नारी होने का रोल पूरी निष्ठा से निभाया समुन्द्र तल से 4000 मी. ऊपर चूल्हा बनाकर और आग जलाकर । टीम 'मिर्गी महात्मा विश्व इलेवन' के आने से पहले ही उनकी गालियाँ गुफा में गूंजने लगी । एक बार फिर से दोनों टीमों में टॉम एंड जैरी वार हुआ जो जल्द ही बीड़ी सुलगने पर समाप्त भी हो गया ।

ये लोग 6 मैगी के पैकेट और इसे बनाने के लिए बर्तन भी लाये थे । चूकिं आग जल चुकी थी इसलिए मैंने तुरंत बर्तन को चूल्हे पर रखकर मैगी बनानी आरंभ कर दी । मैगी उबलने के दौरान खाने के लिए बर्तन का भी बंदोबस्त किया गया जिसमें सभी मैगी के पैकेट में शाही खाना खायेंगे ।
मैगी सेशन के बाद गुफा के स्पेस ने हाथ खड़े कर दिए । यह एक छोटी गुफा थी जिसमें सिर्फ 3-4 लोगों के सोने की जगह थी लेकिन आज यहाँ 5 लोगों को एडजस्ट होना था । जैसे-तैसे 5 में से 3 ने घुटनों को पेट में आश्रय दिया बाकी 2 ने अपने पैर बाकी 3 पर रखे । और इस तरह रात 10 बजे सभी ने गालियों भरे दिन को श्रधांजलि दी।

आज पोवारी से गुफा तक 11.5 किमी. की दूरी तयहुई 6 घंटे 45 मिनट में । आज का खर्चा जीरो रहा और अब तक इस यात्रा पर शुरू से 1087 रूपये खर्च हो चुके हैं ।

आशा करता हूँ आपको किन्नर कैलाश यात्रा का दूसरा भाग पसंद आया होगा । आपके सुझावों के इंतजार रहेगा तब तक हर हर महादेव ।

किन्नौरी सेब

प्रेयर और पर्वत

नेपाली हल्क 

सतलुज पार दिखता रिकोंगपियो

जोरकांदेन पर्वत


तू और मैं

नेपाली भाई



फोरेस्ट डिपार्टमेंट की मदद से बनी सराय 



मलिंग खाटा

मलिंग खाटा पर इस साल से कैम्पिंग की सुविधा भी उपलब्ध है

कभी-कभी राहें आपको स्वर्ग भी ले जा सकती हैं 

मलिंग खाटा : नीचे दिखती सराय और लंगर हॉल



मलिंग खाटा के बाद का रास्ता

अकेला डाउन हिल

तीखी उतराई

सामने दिखती गुफा

एकमात्र ग्लेशियर इस यात्रा पर 

सफ़र के कुछ साथी

किन्नर कैलाश यात्रा में अकेली उतराई

गुफा

ब्लू पॉपी


Comments

  1. आज आपने सभ्य शब्दावली का उपयोग नहीं किया है।
    दुख हुआ यह देखकर,
    बच्चे बूढे, महिला और जो भी इसे पढेंगे, सब परेशान होंगे।
    हो सके तो गालीगलौच वाले शब्दों को हटा ही दे....
    इनके कारण लेख अपने मूल से भटक रहा है।

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  2. माफ कीजिय रोहित जी।

    पर संदीप जी की तरह मुझे भी यह बात अछि नही लगी। आपने उनके युद्ध का उल्लेख किया, बढिया किया पर जो भाषा इस्तेमाल की वह गलत की।

    श्रीमान ब्लॉग आपका है आप मालिक, पर किसी पढ़ने वाले को ये शब्द व्यथित कर सकते हैं।

    बाकी आपका लेख पढ़कर मुझे भी मेरी यात्रा की याद आ गयी।

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