1877 रू. में 2 कैलाश दर्शन : ज्यूरी - पोवारी (2 Kailash visited in just 1877 rs. : Jeori - Powari)

26 जुलाई 2017 
“मैं पहले भी हिमालय में रह चुका हूँ, घूम चुका हूँ परन्तु आज सुबह उठकर जैसा महसूस हो रहा है वैसा अतीत में भी हुआ होगा लेकिन आज का एहसास अभी से जुड़ा है, मुझसे जुड़ा है, मेरी संतुष्टि से जुड़ा है । पहले कभी इतना पूर्ण महसूस नहीं हुआ । आज खुद को देख पाने में सक्षम हूँ, सक्षम हूँ इसका स्वाद चख पाने में जो होटो पर डोल रही है । संतुष्टि ही तुम्हारा नाम है मेरे भीतर” ।

किन्नर कैलाश यात्रा 2017

तड़के जब 6 बजे आँखें अपने आप खुली तब पूरा हॉल नींद के आगोश में नवजात शिशु के तरह घुटनों को पेट में छुपाकर कम्बल ताने सोया था । बाहर बारिश हो रही थी और मुझे किसी भी प्रकार की जल्दबाजी नहीं थी, बारिश रुकेगी तभी निकालूँगा । आज भीगते जूतों की भी कोई फ़िक्र नहीं थी क्योंकि रात को ही उनको गेट पर खड़ी एक गाडी के नीचे सरका दिया था बादलों के मिजाज को देखते हुए ।

यह रात कई दिन बाद स्लीपिंग बैग के बिना कम्बल में बीती, वैसे सच बताऊँ आज तक मुझे कभी भी स्लीपिंग बैग के भीतर सोने में कोई समस्या नहीं आई । साढ़े छह बजे उठकर बाहर निकला बारिश तेज थी और हवा भी । आज कई दिनों बाद दांतों को साफ़ किया, मुंह-हाथ धोकर वापस अपने कम्बल में आ गया और इंतजार करने लगा बारिश के रुकने का, इतंजार जोकि आज बहुत अच्छा लग रहा था ।

श्रीखंड महादेव से आने के बाद शरीर में काफी कमजोरी महसूस हो रही है क्योंकि वहां ज्यादातर समय चलते हुए बिताया, खाने का फिक्स समय सिर्फ रात को होता था ऊपर से मैंने खरीदकर खाने में भी काफी कंजूसी की । पूरी यात्रा में सिर्फ एक ही जगह खाना खरीदकर खाया ।

यह शरीर जिसने मेरा इतना साथ दिया है अब मेरा फ़र्ज़ बनता है इसका साथ देने और इसका ख्याल रखने का । आज इसे भरपूर खाने को दूंगा और पोवारी पहुंचकर पूरे दिन वहीं आराम करूंगा वैसे भी पोवारी में 23 जुलाई से किन्नर कैलाश यात्रियों के लिए लंगर लग चुका है ।

मुरादाबाद जत्थे ने सात बजे चाय के कप सभी के हाथों में पकड़ा दिए गर्मागर्म चाय और बिस्कुट के साथ । जब सबकुछ आपको बिना मांगे ही मिलता चला जाता है तब जैसा महसूस होता है उसे लिख पाना नामुमकिन है ।
आठ बजे बारिश रुकी, मुरादाबाद जत्थे को नमस्कार करके चल पड़ा बस स्टैंड की तरफ जहां से मुझे रिकोंगपियो की बस लेनी है । बाहर निकला ही था कि किन्नर कैलाश वाले बाबा दिखाई दिए । उन्हें देखकर मैं खुदको रोक नहीं पाया उनके पास जाने से, मुझे देखते ही वो हंसने लगे और बोले “मुसाफिर चल पड़ा” । उनके समक्ष जाते ही हाथ सम्मानपूर्वक अपने आप जुड़ गये । मेरे शब्दों को मुंह से निकलने का समय ही नहीं मिला क्योंकि एक-एक करके उन्होंने सारी जानकारी मेरे सामने रख दी ।

“ऐसा करना ज्यूरी से बस लो रिकोंगपियो वाली, कंडक्टर को बोलना तुम्हें शोंगथोंग नहीं थोंगपोंग...जोंगपोंग जैसा ही कुछ नाम है उस पुल का जहां तुम्हें उतारे वहां से थोड़ा पैदल चलकर लंगर के सामने पहुंच जाओगे । कल ही तुम श्रीखंड से आये हो तो आज पूरे दिन लंगर में रहकर आराम करना और कल यात्रा शुरू करना । मलिंग खाटा मत रुकना क्योंकि वहां से कैलाश तक पहुंचने में समय बहुत लग जाता है बेहतर होगा गुफा में रुको । नीचे से खाने का सामान ले जाना मत भूलना क्योंकि ऊपर कहीं कुछ नहीं मिलेगा सिवाय मलिंग खाटा के जहां लंगर वालों ने थोड़ी सी व्यव्स्था की हुई है । यात्रियों के लिए वहां तुम्हें खिचड़ी और चाय मिल जायेगी खाने को । लंगर से कम्बल लेकर जाना क्योंकि गुफा में कुछ नहीं है । अगले दिन जल्दी उठना, 4 बजे निकल पड़ना क्योंकि ऊपर मौसम बहुत जल्दी खराब हो जाता है, तेज हवाएं चलने लगती हैं और दर्शन करके सीधा नीचे आ जाना” ।

सारी जानकारी लेते वक़्त मैं सिर्फ अपनी गर्दन हिलाता रहा और एक-एक जानकारी को ध्यान से सुनता रहा, वैसे तो मैं किन्नर कैलाश पहले भी जा चुका हूँ लेकिन वहाँ के बारें में कभी किसी ने मुझे इस तरह नहीं समझाया । “तुम्हें कोई मदद तो नहीं चाहिए वैसे तुम्हारा खर्चा एक रुपया भी नहीं होगा यात्रा पर”, बोलकर वो हंसने लगे । मैं भी हंसा और इस प्रस्ताव के लिए धन्यवाद देकर, करुणावश उनके पैर छुकर वहां से ‘ओम नम: शिवाय’ बोलकर जल्दी ही गेट की तरफ चल पड़ा, जल्दी से इसलिए कि अगर थोड़ा और समय वहां बिताया तो उनकी आँखों में डूब ही जाता ।

मंदिर के गेट पर पहुंचकर गाड़ी के नीचे झाँककर देखा तो बारिश से जूते बच गये थे गीले होने से लेकिन वो तो गीले पहले से ही थे । आज मैंने सुखी जुराबें पहनी कई दिन बाद जिसके बाद जूते उतने गीले महसूस नहीं हुए जितने पिछले चार दिन हुए ।

पौने नौ बजे ज्यूरी बस स्टैंड पर पहुंचा जहां पहुंचते ही रिमझिम बरखा शुरू हो गई । यहाँ से एक रास्ता सराहन के लिए भी जाता है जहां प्राचीन और प्रसिद्ध भीमकाली मंदिर स्थित है । यहाँ एक प्राइवेट बस खड़ी थी जो रिकोंगपियो जा रही थी लेकिन यह फुल थी । मेरी जिज्ञासा को देखते हुए कंडक्टर ने पूछा की “कहां जाना है?”, ‘पोवारी’, “तो बैठ जाओ बस जा रही है” । “इसमें तो सीट ही नहीं है”, “10 मिनट बाद काफी सावरिया उतरेंगी वहाँ बैठ जाना, चलो सामान पीछे डिग्गी में रख दो” । सामन डिग्गी में रखकर मैं उस इंसान के पास खड़ा हो गया जो कंडक्टर के अनुसार 10 मिनट बाद उतरने वाला था ।

9 बजे बस चल पड़ी । पोवारी ज्यूरी से लगभग 72 किमी. दूर है । प्राइवेट बस से वहाँ का टिकट 110 रु. लगा ।
10 मिनट बाद 10 मिनट पूरे हो गये और सवारी नहीं उतरी, मुझे लगा शायद अगले बस स्टैंड पर उतरेगी लेकिन अगले 5 बस स्टैंड तक भी सवारी सीट से हिली तक नहीं । क्या करूँ मुझे बैठना था क्योंकि लम्बी यात्रा के बाद शरीर खड़ा होने की स्थिति में बिल्कुल नहीं था । कंडक्टर के 10 मिनट 40 मिनट बाद पूरे हुए तब जाकर सवारी उतरी । सीट पर बैठने के 5-10 मिनट बाद ही मुझे नींद आ गई । मुझे एहसास ही नहीं हुआ कि मैं कितनी देर तक सोता रहा क्योंकि जब आँखें खुली तब बस शोंगथोंग ब्रिज को पार कर रही थी ।

आनन-फानन में मैं बस के गेट पर पहुंचा और खुद को सम्भालते हुए खुद से कहा “लंगर आयेगा रोड साइड पर वहीं उतरूंगा” । लगभग 100 मी. आगे निकलते ही लंगर का बोर्ड आ गया जहां इशारा करते ही कंडक्टर ने जोर से सिटी बजाकर बस को रुकवा दिया । मुझसे पहले उसने पायदान से कुदकर डिग्गी खोली और मेरे दोनों बैग मेरे हवाले कर दिए ।

सुबह 11:30 बजे यहाँ पहुंचा और यहाँ पहुंचकर मुझे हैरानी हुई क्योंकि इस तरफ मौसम एकदम साफ़ है ऊपर से तेज धुप भी निकली है । सबसे पहले जूतों को धुप में रखा सूखने के लिए फिर दोनों बैग लंगर-हाल में रखे और उसके बाद साबुन से मुंह-हाथ धोकर लंगर ग्रहण किया । अब वक़्त था आराम और सिर्फ आराम करने का ।

यह लंगर ‘सारथी सेवा संघ’ (गाजियाबाद व रिकोंगपियो) और ‘शिव कृपा सेवा दल’ (जालंधर-अमृतसर-पठानकोट)  के प्रयासों से पांचवी बार आयोजित किया गया । यह लंगर यात्रियों की सेवा के लिए 23 जुलाई से 6 अगस्त तक आयोजित किया गया, जहां सभी यात्रियों के लिए रात्रि-विश्राम और भोजन की व्यव्स्था सुचारू रूप से की गई है ।

दोपहर तक आराम किया और हल्का खाना खाकर फिर आराम किया । दोपहर एक बजे अंतिम दल ने पोवारी छोड़ा मलिंग खाटा पहुंचने के लिए । पूरे दिन दर्शन करके लौटते यात्रियों का तांता लगा रहा ।
शाम को 7 बजे आरती हुई जिसके बाद लंगर वालों के साथ मैं भी खाना खिलाने में अपना योगदान दिया ।

करीब नौ बजे मैं भी भोजन ग्रहण करके लंगर-हाल में आकर लेट गया जहां मेरी ही बगल में दिल्ली से आये एक यात्री और लेटे थे । उन्होंने बताया कि वो आज ही यात्रा के लिए निकले थे और आज ही वापस आ गये क्योंकि रास्ते में उनकी तबियत काफी खराब हो गई थी । वो बार-बार खुद को दुःख पहुंचा रहे थे यह सोच सोचकर कि यात्रा पूरी नहीं हो सकी । मैंने उन्हें समझाने की पूरी कोशिश की कि “शरीर है तो यात्रा है, शरीर नहीं तो किसी भी यात्रा का कोई वजूद नहीं, समझदार लोग समय पर सही फैसला लेते हैं और जो ऐसा करने में सक्षम नहीं होते वो हमेशा खुद के साथ-साथ ओरों के लिए भी मुसीबत बनते हैं, मैं आपके फैसले का आदर करता हूँ । इस बार नहीं तो अगली बार सही” ।

रात साढ़े दस बजे मैं सो गया यह सोचते-सोचते कि “कल सुबह जल्दी उठकर 6 घंटे में मलिंग खाटा और अगले 2 घंटे में गुफा पहुंच जाऊंगा” । कभी-कभी यह ख्याल भी दिमाग में आया कि “अगर सुबह 3 बजे ही निकल जाऊं तो कल शाम 7-8 बजे तक वापस भी आ सकता हूँ” । लेकिन ये ख्याल तब छोड़ दिया जब याद आया कि मैं अभी श्रीखंड से आया हूँ और कल यात्रा बिना नाश्ता किये शुरू ही नहीं करूंगा” ।

आज सुबह ज्यूरी से 8:45 बजे चला और बस से 72 किमी. के 110 रु. चुकाकर पोवारी 11:30 बजे पहुंचा । आज के दिन का खर्चा 110 रु. रहा और अभी तक इस यात्रा पर कुल 1087 रु. खर्च हो चुके हैं ।

आशा करता हूँ आपको किन्नर कैलाश यात्रा का पहला भाग पसंद आया होगा । आपके सुझावों के इंतजार रहेगा तब तक हर हर महादेव ।

दिल्ली से पोवारी रोड मैप

भाग-1 : बीड़-शिमला (Bir-Shimla)
भाग-2 : शिमला-थाचडू (Shimla-Thachdu)
भाग-3 : थाचडू-भीम डुआरी (Thachdu-Bhim Dwari)
भाग-4 : भीम डुआरी-श्रीखंड महादेव–भीम तलाई (Bhim dwar–Shrikhand Mahadev–Bhim talai)
भाग-5 : भीम तलाई–जाओं-ज्यूरी (Bhim talai–Jaon-Jeori)

Comments

  1. रोहित भाई आपको स्लीपिंग बैग में परेशानी नहीं होती है मेरे साथ एकदम उल्टा है मुझे यह कैद लगती है रात में एक दो बार चैन खोलकर बैठना पड जाता है। सबसे ज्यादा मुसीबत करवटें बदलने पर होती है
    आप पतले हो, मैं मोटा हूँ हो सकता है यह भी एक अंतर हो

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    1. हाहा...स्लीपिंग बैग की क्या बताऊँ आपको अब तो होटल में भी स्लीपींग बैग में ही सोता हूँ। सस्ती घुमक्कड़ी ने शायद स्लीपिंग बैग को बिस्तर बना दिया है।

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  2. भाई लगातार आपकी सारी पोस्ट पढ़ी,,, मै थक गया पर आप नही थके,,, नए सफर के लिए हम भी तैयार है।

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    1. सचिन भाई स्वागत है गर्भ में, हिमालयी थकावट तो सुकून के बराबर है। शुभकामनाएं

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  3. बहुत बढ़िया जी।

    मैं भी 27 जुलाई को उसी लंगर में था। पहले पता होता तो आपसे मुलाकात अवश्य होती।

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