1877 रु. में 2 कैलाश दर्शन : थाचडू-भीम डुआरी (2 Kailash visited in 1877 rs. : Thachdu-Bhim Dwari)

23 जुलाई 2017
बाहर से छनकर आती रोशनी ने पलकों को खुलते ही चिकोटी काटी और नये दिन में स्वागत किया । पीली-सफ़ेद तिरपाल से बने टेंट के भीतर कोई 15 यात्री हरे-नीले कम्बलों में अभी भी नींद के आगोश में थे । बाहर यात्रियों की आवा-जाही शुरू हो चुकी थी और रह-रहकर ‘हर हर महादेव’, के जयकारें कानों को सुनाई दे रहे थे । न घड़ी, न मोबाइल और न ही किसी और प्रकार का डिवाइस पास था जो समय की पहचान करा सके । कुछ मिनटों बाद बगल में लेते एक लड़के को जब बार-बार करवटें बदलते देखा तो तुरंत पूछ लिया कि “भाई जी टाइम कितना हुआ होगा ?”, जवाब उनके कम्बल के भीतर से ही आया “साढ़े पांच” ।
जवाब मेरी सोच के अनुकूल नहीं था क्योंकि मैंने स्लीपिंग बैग में लेते-लेते अनुमान लगाया था कि समय 6 से 7 के बीच होगा पर अब जब सही समय का पता चल गया है तो क्यों न इस नये ताजा दिन की शुरुआत की जाये ।

श्रीखंड महादेव यात्रा 2017 : बढ़ते कदम भीम डुआरी की ओर

स्लीपिंग बैग में घुंसने से पहले मैं हमेशा थोड़ी तैयारी करता हूँ जैसे कि स्लीपिंग बैग में घुसने से पहले बाथरूम चले जाना फिर अपनी चप्पल या जूतों को अपनी पहुँच में रखना ताकि रात-बेरात उनका फिर से इस्तेमाल किया जा सके, सिर के राईट साइड में हेडलैंप को रखना ताकि लेफ्ट हैण्ड से उसे इमरजेंसी में काम में लाया जा सके, सिर के नीचे अपनी जैकेट या कोई कपड़ा लगाकर तकिया बना लेना ताकि सिर बाकि शरीर से थोड़ा ऊपर रहे जिससे ब्लड-फ्लो प्रॉपर और सही दिशा में होता है और ये ट्रिक जुखाम में भी काफी कारगर है । बहुत से लोग अपने भरी बैगों को ही अपना सिरहाना बना लेते है, मेरी सलाह माने तो ऐसा करने से बचे क्योंकि ये गतिविधि आपकी गर्दन और कमर में दर्द करने के लिए प्राप्त होगी । पैरों में अच्छी तरह ‘फूट-पाउडर’ लगाकर ऊनी जुराबें पहन लेता हूँ (ऊनी जुराबें – ये ऊनी हैं, साइज़ में रेगुलर जुराबों से बड़ी होती, दिखने में ऊनी जूते लगती हैं), सिर पर गर्म टोपी और अंत में खुद को स्लीपिंग बैग की गर्माहट के हवाले कर देता हूँ ।

5 मिनट बाद उठा, स्लीपिंग बैग पैक करके रकसैक में डाल दिया । न कोई ब्रश न कोई शौचालय जब जरुरत होगी तब इनको भी अंजाम दिया जायेगा । पूरे दिन का सबसे मुश्किल काम मुझे दिन की शुरुआत में ही करना पड़ा, कल के भीगे जूते-जुराबों को पहनना । सच बताऊँ तो ट्रैकिंग के दौरान मुझे बारिश में भीगना बिलकुल नापसंद है ऊपर से जब पानी जूतों को भिगोता हुआ जुराबों और पैरों तक पहुंच जाता है तब तो दिल करता है कि काश कोई जादू हो जाए और ये सूख जाएँ ।

बाहर मौसम आज भी कल ही की तरह था । गर्दन उठाकर जब ऊपर देखा तो महसूस किया कि काले बादल लठ्ठ लेकर तैयार खड़े हैं कभी भी हमला कर देंगे । बैग के साथ बाहर आ गया और लंगर में दाखिल हो गया जहां नाश्ता चल रहा था । आज यहाँ खीर, आलू की सब्जी, और पूड़ी परोसी जा रही थी श्रद्धालुओं को चाय के साथ । लंगर के लिए लम्बी लाइन लगी थी क्योंकि यहाँ यात्री ज्यादा थे और लंगर के सेवादार कम जोकि अपने काम में तहेदिल से जुटे हुए थे । मैं भी लंगर वाली लाइन का हिस्सा बन गया और जल्द ही मेरी प्लेट में 2 गर्मागर्म पूड़ी और खीर आ गई । मेरा बिलकुल मन नहीं था खाने का लेकिन आज के सफ़र को याद करते हुए मैंने इसे अपने लिए जरुरी समझा और खाना शुरू किया ।

पहला निवाला मुंह में डाला ही था कि देखा एक बुजुर्ग अंकल का नंबर आते ही पुड़ियाँ खत्म हो गई । वो टोकरी तक पहुंचते-पहुंचते रह गये इतने में लोगों ने अपनी-अपनी प्लेटों को 2-2 पूड़ियों से सजा लिया । मैंने अपनी एक पूड़ी उनकी प्लेट में उनके मना करने से पहले ही पहुंचा दी । उन्होंने मेरी तरफ देखा और ‘ओम नम: शिवाय’ के साथ ‘जीते रहो’ बोलकर भोजन का आनंद उठाने लगे ।
चाय के दौर के साथ ही काले बादलों ने हमला बोल दिया । रेनवियर को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा, आज उन्हें फिर अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा से करनी होगी । थाचडू को सुबह करेक्ट 6:30 पर छोड़ा ।

आज का प्लान पार्वती बाग़ तक पहुंचने का लेकिन यहाँ सब यह बोल रहे है कि “वहां तक आपको जाने नहीं दिया जायेगा क्योंकि पार्वती बाग़ के टेंट उन यात्रियों के लिए हैं जिन्हें श्रीखंड से लौटते समय शाम या रात हो जाती है” । अगर पार्वती बाग़ के टेंट सिर्फ आपातकालीन स्थिति के लिए हैं तो ठीक है मैं भीम डुआरी ही रुक जाऊंगा । पार्वती बाग़ मैं इसलिए रुकना चाह रहा था क्योंकि वहां से श्रीखंड का रास्ता सिर्फ 5 किमी. रह जाता है, पूरे 2 किमी. दूरी कम हो जाती है भीम डुआरी से पार्वती बाग़ तक की । 2 किमी. जाना और 2 किमी. आना मतलब कम-से-कम 2 घंटे कम हो जाते हैं दर्शन वाले दिन । मैं पहले भी श्रीखंड की यात्रा कर चुका हूँ, पिछली बार भी दर्शन भीम डुआरी से ही किये थे और मैं ही जानता हूँ कि दर्शन वाले दिन मेरी क्या हालत हुई थी, उसी अनुभव को याद करते हुए मैं पार्वती बाग़ रुकना चाह रहा था ।

थाचडू से आधा किमी. चलते ही बारिश बंद हो गई लेकिन चढ़ाई अभी भी जारी थी । थाचडू से काली टॉप की दूरी 3 किमी. है और हाईट गेन 445 मी. का होता है । इन दोनों जगहों के बीच एक जगह और आती है जहां मात्र 2 ही टेंट लगे हैं और इसका नाम ‘तनैन गई’ है । तनैन गई पहुंचने से पहले ही वृक्ष-रेखा (ट्री-लाइन) खत्म हो जाती है और रंग-बिरंगे फूलों की हुकूमत शुरू हो जाता है । अगर मौसम इजाजत दे तो यहाँ से दोनों तरफ की घाटी के बेहद सुन्दर नज़ारे दिखाई देते हैं ।
थोड़े पसीनों के बीच मुझे कोई समस्या नहीं थी, पैर ठीक थे, कंधे दुरुस्त और कमर सही काम कर रही थी । शरीर पूरी तरह फिट और रिलेक्स महसूस हो रहा था । ऊपर से जब बारिश भी रुक गई तो कैमरा वापस मेरे गले में आ गया । लगभग 1 किमी. और फिर चढ़ाई खत्म होने वाली थी ।

थाचडू से काली टॉप की 3 किमी. की दूरी मात्र 45 मिनट में पूरी हुई । बेशक मेरे पास टाइम (घड़ी) नहीं था लेकिन कहीं से भी चलने से पहले और पहुँचने पर पहला काम किसी-न-किसी यात्री से टाइम पूछना ही होता । अभी तक की यात्रा पर अच्छा महसूस हो रहा था ।
काली घाटी की ऊँचाई 3894 मी. है और यहीं पर आकर डंडा-धार की तीखी चढ़ाई खत्म होती है । कहते हैं यह स्थान ‘काली जोगणी’ का निवास-स्थान है इसलिए यहाँ स्थानियों ने ‘काली जोगणी’ का छोटा सा मंदिर भी स्थापित किया है जिसकी पूजा छड़ी-यात्रा के बाद शुरू हो जाती है ।

यह काली टॉप मुझे बेहद पसंद आया क्योंकि यहाँ से जो नज़ारें दिखाई देते हैं वो आपको प्रकृति के प्रेम में डालने के लिए काफी हैं । हरियाली, पहाड़, बर्फ और दीवानी हवाएं आपको जीवंतता का अनुभव कराती हैं । हम भी कुछ हैं, हममें भी कोई बात है का दिलकश एहसास होता है । दुःख और परेशानियों के बाद जो बचता है उसके होने का एहसास कराती है, अपने होने का एहसास कराती है, ‘ज़िन्दगी’ के ज़िन्दगी होने का एहसास कराती है, हमारे जिंदा होने का एहसास करती है ।
टॉप से आपको श्रीखंड महादेव, भीम-तलाई, कुंशा, भीम डुआरी और पार्वती बाग़ के दर्शन साफ़-साफ़ होते हैं । मौसम साफ़ हो तो इन नज़ारों की खुबसुरती और भी बढ़ जाती हैं ।

प्रकृति के प्रेम रस को ग्रहण करके आगे बढ़ने ही वाला था कि तभी पीछे से किसी ने पुकारा “भोले आओ थोड़ा दम ले लो”, मुड़कर देखा तो कुछ लड़के सिगरेट पी रहे थे, यहाँ तो यह बताना भी जरुरी नहीं कि वो भरकर पी रहे थे । मैंने हाथ जोड़ें और कहा “धन्यवाद आपके ऑफर का मगर भोले (मैं) के लिए इसका सेवन वर्जित है”, हर हर महादेव बोलकर मैं बढ़ने ही लगा था कि तभी एक और आवाज आई पीछे से “होटों को देखकर तो लगता है कि भोले सेवन करते हैं” । ये बात मेरे होटों को पसंद आई क्योंकि वो खिल गये थे, फिर से मैंने हाथ जोड़कर जय शंकर की बोला और काली टॉप से नीचे उतरने लगा ।

डंडा-धार की जितनी तीखी चढ़ाई है काली टॉप से भीम-तलाई तक उतनी ही तीखी उतराई है । काली-टॉप से भीम-तलाई तक रास्ते की दूरी आधा किमी. से थोड़ी सी ज्यादा है लेकिन इतनी सी दूरी में 338 मी. का अवतरण (हाईट लूज) हो जाती है ।
तीखी उतराई हमेशा से घुटनों की दुश्मन रही है ऊपर से काली टॉप से यहाँ तक का रास्ता फिसलन, पत्थरों, और बहते पानी से युक्त है जो कि यात्रियों को सम्भलकर चलने पर विवश कर देता है । थाचडू के बाद इसी घाटी में पीने का पानी मिलता है जहां मैंने भी अपना पेट और बोतल भरी । घाटी के इस आँगन में ‘भोजपत्र’ और ‘तांगुड़’ प्रजाति के पेड़ पाये जाते हैं । जाओं के स्थानीय निवासी धनीराम ठाकुर यहाँ यात्रियों को टेंट और खाने की फेसिलिटी उपलब्ध कराते हैं, इन्होंने बताया कि तांगुड़ के फूल और पत्तियां दवाइयों में इस्तेमाल की जाती हैं और केवल तांगुड़ ही नहीं बल्कि और भी विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियाँ यहाँ पाई जाती हैं जिन्हें स्थानीय सीजन में आकर चुनते हैं जिनमें से कुछ ये लोग अपने और अपने परिवार के लिए इस्तेमाल करते हैं बाकी शहरी ठेकेदारों के हवाले करके अपना मेहनताना ग्रहण करते हैं ।

वैसे तो ये घाटी बेहद सुंदर और लुभावने फूलों से सुसज्जित है लेकिन मेरे फेवरेट चार फूल रहे इस घाटी के जिनमें पहला है ‘ब्रह्मकमल’, (Saussurea obvallata) दूसरा है ‘बिस्तोर्ता अफ्फिनिस’ (Bistorta affinis), तीसरा है ‘मोरिना लोंगिफोलिया’ (Morina longifolia), और चौथा है 'ब्लू पोपी' (Blue poppey) ।

यहीं पास ही छोटा सा गोल कुण्ड भी है जिसे स्थानीय भाषा में ‘काली-कुण्ड’ कहा जाता है, जिसका व्यास 76 फुट बताया जाता है । जहां डंडा-धार पर मात्र 1-2 स्थान पर ही प्राकृतिक पानी का स्त्रोत है वहीँ घाटी के इस हिस्से में ताजे पानी के कई कुदरती चश्मे हैं । स्थानियों की माने तो इस कुण्ड का सम्बन्ध पांडवों से भी रहा है, कहते हैं वनवास के दौरान युधिष्टर ने इस कुण्ड के पास तपस्या की थी । काली-कुण्ड से श्रीखंड महादेव तक पांडवों के रास्ता बनाया था जिसे ‘पांडव गोसर’ कहते है गोसर मतलब रास्ता । अपने वनवास के दौरान यह स्थान पांडवों का कुछ समय के लिए निवास स्थान भी रहा । काली-कुण्ड से भीम-तलाई तक काफी टेंट लगे हैं
, यहाँ अंदाजन 150 लोगों के ठहरने और खाने व्यव्स्था है ।

7:45 पर मैंने भीम-तलाई से आगे बढ़ना शुरू किया । मौसम ठीक था, बारिश तो नहीं थी लेकिन ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी और शरीर एकदम बढ़िया काम कर रहा था ।
भीम-तलाई से भीम डुआरी की दूरी 6 किमी. है जिसे मैंने दो घंटे पंद्रह मिनट में पूरा किया । पिछली यात्रा में इस रास्ते पर कई सारे स्नो-ब्रिज थे लेकिन इस बार सिवाय एक के कहीं कोई स्नो-ब्रिज नहीं मिला जिसका परिणाम ये हुआ कि मेरे गीले जूते पानी से तर-बतर हो गये । ये 6 किमी. का रास्ता उतार-चढ़ाव से भरा पड़ा है और ये उतार-चढ़ाव कोई आम उतार-चढ़ाव नहीं है बल्कि ये एकदम से आपको किसी दीवार पर चढ़ा देंगे और एकदम से किसी दीवार से नीचे फैंक देंगे ।

भीम तलाई और भीम डुआरी के बीच एक जगह कुंशा आती है यहाँ भी यात्रियों के लिए ठहरने और खाने की सुविधा उपलब्ध है । यहाँ करीबन 80-100 यात्रियों के रुकने के लिए प्राप्त टेंट लगे हैं ।
काली-कुण्ड से भीम डुआरी तक पीने के पानी की कोई दिक्कत नहीं है, यहाँ यात्रा के इस हिस्से में प्राकृतिक पानी बेहिसाब मौजूद है ।

जब मैं कुंशा को पार कर रहा था तब मैंने यहाँ 2 व्यक्तियों को देखा जिनमें दोनों ही अपने पैरों पर नहीं जा रहे थे । पहला चार कन्धों पर सवार था जबकि दूसरा अपने 2 हाथों पर । पहला यात्री चंडीगढ़ का रहने वाला था जिसने भीम-बही पर अपने प्राण त्यागे जबकि दूसरा जो अपने हाथों पर चल रहा था वो एक काले कपड़ों में सुसज्जित बाबा था जिसके दोनों पैरों में पोलियो था, उन्हें चलने के लिए अपने कूल्हों और हाथों का इस्तेमाल करना पड़ रहा था । इन दोनों को देखकर मेरी आँखे भीगे बिना न रह पायीं । इस नज़ारे ने इन रास्तों के प्रति मेरी आस्था और बढ़ा दी । पहली बार मैं इस यात्रा पर 2014 में आया था और उसी साल ये यात्रा प्रशासन के हाथ में गई थी । उस साल 6 अलग-अलग जगहों पर मृत्यु के चलते प्रशासन ने यात्रा को रोक किया था जिस वजह से मेरी ही तरह बहुत से यात्रियों को जाओं और सिंहगार्ड से ही वापस जाना पड़ा था । जाओं में उन 6 यात्रियों के शव को देखकर तब जैसा महसूस हुआ था उसी एहसास से इस बार भी अछुता न रह सका ।

सुबह 10 बजे ही मैं भीम डुआरी (3710 मी.) पहुंच गया और जब यहाँ लगे लंगर में जानकारी ली तो पता चला कि अगर मैं पार्वती बाग़ चला भी जाता हूँ तो वहां तैनात पुलिस अधिकारी मुझे वापस भीम डुआरी भेज देंगे इसलिए मेरे लिए यही अच्छा रहेगा कि मैं आज का दिन यही बिताऊं और कल सीधा यहाँ से श्रीखंड महादेव के दर्शन के लिए निकलूं ।
वैसे तो इस यात्रा पर अभी तक बहुत से लोग मेरे अकेले आने पर काफी प्रभावित हुए लेकिन ये लंगर वाले उन सबसे कुछ ज्यादा ही प्रभावित हुए मुझसे । इन्होंने मुझे लंगर हाल में ठहरने का न्यौता दिया । इस गर्म स्वागत के लिए मैं सभी का एहसानमंद हो गया । लंगर हाल में सामान रखकर पहले मैंने पानी पिया और फिर दाल-चावल खाकर शरीर को उर्जा के हवाले किया । जल्द ही मैंने एक गिलास चाय का भी गटका । पहाड़ों में तरल किसी भी प्रकार का हो और ज्यादा हो तो आपकी बॉडी के लिए बेहद फायदेमंद हैं ।
खाने के बाद मैंने अपने हाथ, पैर और मुंह साबुन से धोया और लगभग 12 बजे तक कम्बल में बैठकर तो कभी लेटकर खुद को आराम उपलब्ध कराया ।

कहावतों के हिसाब से भीम डुआरी भीम का निवास स्थान रह चुका है । इस स्थान पर भीम की विशेष गुफा भी है जहां बाहुबली भीम रहते थे । गुफा मतलब शायद डुआरी है (मेरे हिसाब से) । इस स्थान पर लगे बोर्ड की माने तो इस गुफा में पांडवों के चित्र भी चित्रित हैं, वैसे मैं इस गुफा से अछुता ही रह गया ।
भीम डुआरी में स्थित लंगर को चलाने का श्रेय भी अरसू के श्री गोपाल जी की टीम को ही जाता है । लंगर का आयोजन 15 जुलाई से 23 जुलाई तक किया जा रहा है । यहाँ बात करके पता चला कि प्रतिदिन यहाँ 200 किग्रा. चावल बनाएं जाते हैं यात्रियों के लिए । लंगर में दाल-चावल और चाय लगभग 14 घंटे चलती है ।

इन्होंने बाहर टेंट की व्यव्स्था भी की है जहां ये लोग यात्रियों को ठहरने के लिए कम्बल भी उपलब्ध कराते हैं । जो यात्री यहाँ रुकना चाहे उनका ये लोग तहेदिल से स्वागत करते हैं लेकिन यहाँ भी ‘फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व’ वाला सिस्टम ही चलता है । लंगर के पीछे यात्रियों के लिए मेडिकल कैंप की व्यव्स्था भी की गई है जहां से अच्छा महसूस न करने वाले यात्री लाभ उठा सकते हैं । मेडिकल-कैंप की व्यव्स्था प्रशासन की तरफ से की गई है । लंगर टीम श्रीखंड जाने वाले यात्रियों को ग्लूकोस, बिस्कुट की सुविधा भी देते हैं रास्ते के लिए । लंगर के सेवादार एक-एक या दो-दो के हिसाब से खुद भी दर्शन करने जाते रहते हैं । लंगर टीम में मौजूद 55 साल के एक शख्स ने तो श्रीखंड महादेव के 23 बार दर्शन कर रखे हैं, मैं बिना उनके पैर छुए खुद को रोक नहीं पाया । यहाँ तो एक ही यात्रा में मन बार-बार चिल्ला-चिल्लाकर बोलने लगता है कि अब कभी इस यात्रा पर नहीं आऊंगा और ये जनाब 23 बार आकर शायद मन के भी आगे निकल गये हैं ।

दोपहर से शाम तक मैंने भी श्रधालुओं को लंगर खिलाकर अपनी भूमिका अदा करी  । इसी सेवा के दौरान मुझे मालूम पड़ा कि इस लंगर के एक सेवादार को मैं पहले भी मिल चुका हूँ । ये बात 2014 की है जब प्रशासन के यात्रा रोकने पर मैं सराहन के भीमकाली मंदिर के दर्शन जा रहा था तब ये अंकल जी मुझे मिले थे बागीपुल बस का इंतजार करते हुए । जहां से हम दोनों ने एक साथ भीमकाली के दर्शन किये और ज्यूरी तक दोनों साथ आये थे ।
रात को करीब 8 बजे मैंने सभी लंगर वालों के साथ खाना खाया । इन्होंने अपने लिए चपाती और आलू की सब्जी बनाई थी और इस दावत में मुझे भी शरीक होने का मौका मिला । 4-5 लोगों का एक स्थानीय ग्रुप जो कि शिमला से आया था बिना खाना खाएं ही सो गया, लम्बी ट्रैकिंग के बाद मेरा भी यही हाल होता है लेकिन सिर्फ एक यात्रा के चक्कर में आप अपने शरीर का नुक्सान नहीं कर सकते । आपको अपने लिए नहीं बल्कि  शून्य-ऊर्जा (जीरो एनर्जी) के पहिये पर सवार अपने शरीर के लिए खाना होगा, ज्यादा नहीं पर थोड़ा तो खाना होगा ही । खायेंगे तो ही आप कल श्रीखंड के दर्शन कर पाएंगे नहीं तो आधे रास्ते से ही वापस आना पड़ेगा ।

डिनर के बाद लंगर वालों ने यात्रा के लिए मुझे भी ग्लूकोस, बिस्कुट और मीठे लड्डू सौंपे । मेरा पिछला अनुभव काफी मुश्किल रहा था इसलिए सच में मुझे कल के लिए फ़िक्र हो रही थी । रात 10 बजे मैं स्लीपिंग बैग में घुस चुका था । मैंने प्लान किया कि कल यहाँ से कुछ न कुछ खाकर ही निकलूँगा और श्रीखंड दर्शन का टारगेट 6 घंटे रखा । 3-4 घंटे में वापस यहीं आ जाऊंगा और अगर शरीर ने साथ नहीं दिया तो यहीं रुक जाऊंगा ।
आज ट्रैक थाचडू (3449 मी.) से भीम डुआरी (3710 मी.) तक किया, ये दूरी 9.7 किमी. थी जिसे तय करने में 3 घंटे 30 मिनट का समय लगा । आज का खर्चा कुछ नहीं आया और अभी तक इस यात्रा का कुल खर्च 637 रु. है ।

आशा करता हूँ आप सभी को श्रीखंड यात्रा का ये भाग पसंद आया होगा । आपके सुझावों के इंतजार रहेगा तब तक हर हर महादेव ।
जुड़े रहिये अगले भाग में यात्री आप सभी को श्रीखंड महादेव के दर्शन कराएगा ।

और खत्म हुई वृक्ष रेखा

तनैन गई

तनैन गई से ऊपर चढ़ते यात्री

जितने रास्ते मुश्किल उतने नज़ारे लाजवाब

कुछ कदम और फिर पहुंच गये काली टॉप

काली टॉप और सामने दिखता श्रीखंड महादेव

काली कुण्ड

काली टॉप से दिखता बेहिसाब सुंदर दृश्य और दूर दिखता खण्डों का खंड

ब्रह्मकमल (Saussurea obvallata) इसके दर्शन करना कोई आसन खेल नहीं है

बिस्तोर्ता अफ्फिनिस (Bistorta affinis)

मोरिना लोंगिफोलिया (Morina longifolia)

ब्लू पॉपी (Blue poppy)

ज़ूम करें और दुर्गम रास्तों का जायजा लें

भीम तलाई और भीम डुआरी के बीच अकेला स्नो ब्रिज

कुंशा

इस जन्म की यात्रा सम्पूर्ण

कुछ ऐसे भी हैं जिनकी अभी भी यात्रा पूर्णता का इंतज़ार कर रही है

आँखों की परीक्षा : क्या आप इस फोटो में 15 यात्री गिनने में समर्थ हैं


बादलों के आँचल में दूर दिखता पार्वती बाग़
 
भीम डुआरी : लंगर हॉल

भीम डुआरी : लंगर टीम बायें से दूसरा लड़का श्रीखंड दर्शन 23 बार कर चुका है और उसके बायीं तरफ बैठे अंकल जी 21 बार

एक धन्यवाद इन कुक्करों को भी जो यहाँ कई सालों से लगातार ड्यूटी निभा रहे हैं
थाचडू से भीम डुआरी का सेटेलाइट मैप

Comments

  1. Badhiya Mausam, Bahut hi badhiya photo. Shabash Rohit

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपकी हौसलाअफजाई का गोयल साब। आपके कमेन्ट ने मोटीवेट कर दिया ।

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  2. मजेदार यात्रा लेख

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  3. आप की हर यात्रा की कहानी ऐसे दिल को छू जाती है मानो में भी इस यात्रा का एक हिस्सा हूँ बहुत बहुत धन्यवाद हम तक ये दिव्य दृश्य पहुंचाने के लिए।

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    1. भाई जी सिर्फ शब्द हैं इन्हें दिव्य समझने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

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  4. रोहित भाई, लगता है एक बार फिर जाना पडेगा यहाँ,
    2011 में जब यह यात्रा की थी तो थाचडू की डंडाधार चढाई ने जरूर प्रतीक्षा करायी थी। जो खत्म ही न हो रही थी। आगे दूर तक दिख रहा था तो महसूस न होता था।

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    1. अवश्य जाएँ भाई जी...यह तो तन और मन के आगे की यात्रा है ।

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  5. बहुत खूब रोहित जी। यात्रा के साथ साथ फोटो भी जानदार है। पूरा मजा आ रहा है आपकी इस यात्रा में।

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    1. शुक्रिया गौरव जी, आशा करता हूँ मज़ा बरकरार रख पाउँगा ।

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  6. रोहित भाई बहुत मजा आ रहा है। आपके साथ होने का अनुभव हो रहा है। यात्री, सहयात्री, लंगर, दुर्गम यात्रा सभी का अहसास हो रहा है। मजेदार व रोचक यात्रा

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  7. बहुत ही साहसिक कार्य जी।

    ईस वर्ष किनोर कैलाश यात्रा तो कर दी। पर श्रीखण्ड यात्रा बन्द हिने के जॉन नही जा पाया।

    आगले वर्ष श्रीखण्ड जी के दर्शन का ही विचार है। देखो भोले क्या करवाते हैं???

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