1877 रु. में 2 कैलाश दर्शन : शिमला-थाचडू (2 Kailash visited in 1877 rs. : Shimla-Thachdu)

22 जुलाई 2017
40 मिनट इंतजार के बाद सफ़ेद-हरे रंग में रंगी HRTC की बस आई जिसके माथे पर हिंदी भाषा में “हिमाचल परिवहन” लिखा हुआ था । भीतर दुधिया लाइट जगमगा रही थी, ज्यादातर सवारियां यहीं उतर गयीं और जो बैठी रह गयीं उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता था । अपने दोनों बैगों के साथ पिछले गेट से जैसे ही पायदान पर आया वैसे ही कंडक्टर की कड़वी आवाज सुनाई दी “अरे कहां चढ़ रहे हो ये बस कहीं नहीं जा रही है, चलो नीचे उतरो” । मेरे साथ चढ़ी कुछ सवारियां एक दूसरे की तरफ ऐसे देखने लगी जैसे सभी से जीने की आखिरी उम्मीद भी छीन ली गई हो । मेरे बोलने से पहले ही एक सफ़ेद बालों वाले 50-55 साल के अंकल जी को गुस्से का भयानक दौरा पड़ा और जोर से चीखे “जहां से ये बस जा रही है वहीँ जा रहे हैं और कहां, तू होता कौन है हमें उतारने वाला”, “रामपुर का बोर्ड तो लगा है बस के सामने”, उनकी आड़ में मैंने भी अपना गुस्सा दिखाया, जोकि गुस्सा कम चापलूसी ज्यादा लग रहा था ।

थाटी बील: कैलाश दर्शन करके अपने-अपने आशियानों की तरफ लौटते यात्री
कंडक्टर ने बहस में न पड़कर जोर से सिटी बजाई, ड्राईवर ने सिटी की तेज पीईईईइइं वाली आवाज का कहना पूरी निष्ठा से माना और बस को रबड़ के पहियों पर दौड़ा दिया ।
रामपुर जाने वाली इस बस ने सिर्फ 5 सवारियों को ही शिमला से उठाया । बाद में कंडक्टर ने अपने-आप बड़बड़ाते हुए सफाई दी कि “सोलन से बस एक टायर पर चल रही है, सवारियाँ बैठाऊं तो कहाँ बैठाऊं, बस बिगड़ जाएगी तो सवारियां खराबी को नहीं समझेगी बल्कि मुझपे चढ़ेंगी” ।
शिमला से दत्तनगर का 177 रूपये का टिकट लेकर जैसे ही मैं अपनी सीट पर बैठा वैसे ही मैंने खुद से ही सवाल किया कि “भला बस एक टायर पर कैसे चल रही है?, बस हिमाचल के रोड पर चल रही है या सूरजकुंड मेले के मौत के कुंए में” ।

ठियोग आने तक मुझे नींद आने लगी थी, नींद तो पहले ही आ जाती लेकिन कंडक्टर और ड्राईवर दोनों ने ‘एक टायर वाले मुद्दे’ को इस तरह उबाल दिया जैसे दोनों किसी सस्ते न्यूज़ चैनल में एंकर हो और इसी खबर को चौबीस घंटे सुना-सुनाकर दर्शकों के कानों से खून निकलना ही उनका मकसद हो ।
9 बजे 'एक टायर वाली बस’ से मैं दत्तनगर से लगभग 4 किमी. आगे बने कंक्रीट के पुल के पास उतरा । दोनों बैगों को कन्धों पर डालकर मैंने पुल को पार किया, नीचे सतलुज का बहाव अपने चर्म पर था । इस नदी पर शायद इतनी मस्ती और किसी मौसम में सवार नहीं होती । पुल के पार बनी छोटी से बावली पर मुंह धोया और बस या लिफ्ट का इंतजार करने लगा, जी हाँ एक बार फिर इंतजार के मौहल्ले में ।
बहुत सारी छोटी-बड़ी गाड़ियों ने मुझे पार किया लेकिन किसी ने भी मेरे अंगूठे के इशारे की जरुरत को नहीं समझा । बाद में एक ट्रक आया, अंगूठा देखा रुक गया, बात हुई तो पता चला कि यहाँ से आगे नहीं जायेगा । मैंने बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया तो पता चला कि “पिछले 6 महीनों से इस रास्ते पर बसों का आना-जाना बंद है, वजह यहाँ होती लगातार लैंडस्लाइड” । ओह इट मीन्स आई ऍम स्टैंडिंग एट रौंग प्लेस ।

डेढ़ घंटे इंतजार का फल ये रहा कि दोनों बैगों को उठाकर मुझे वापस पुल पार करना होगा जहां से बस पकड़कर दत्तनगर जाना होगा और फिर जहां से बागीपुल की बस मिलेगी । बैगों को सम्भालना शुरू ही किया था कि तभी ड्राईवर साब ने मुझे आवाज लगाई मुड़कर देखा तो वहां एक सूमो रुकी हुई थी । बैगों को कन्धों पर लाधते हुए मुझे एहसास हो गया था कि उस्ताद जी ने लिफ्ट का जुगाड़ करवा दिया है ।
कुफरी का ग्रुप था, सूमो में 8 लड़के और 1 ड्राईवर था, फ्रंट सीट पर बैठा लड़का शायद ग्रुप लीडर था उसने मुझे बीच वाली सीट ऑफर करके ‘हर हर महादेव’ का जयकारा लगाया, मैंने ट्रक ड्राईवर की तरफ हाथ जोड़कर विनम्र धन्यवाद दिया ।

तो जो भाई इस सीजन में यात्रा करना चाह रहे हैं उन्हें बताना चाहूँगा कि दत्तनगर बस स्टैंड उतरे वहीँ से लेफ्ट साइड से एक पक्की सड़क दत्तनगर होते हुए आपको निरमंड की ओर ले जायेगा ।
सूमो का माहौल काफी ज्यादा भक्तिमय था । जहां एक तरफ गाड़ी का स्टीरियो भोले के हिमाचली भजन सुना रहा था वहीं भोले की फ़ौज मौज कर रही थी । आई मीन जोइंटस वास एव्री वेयर ।
जाओं गाँव तक सूमो बिना रुके चली और जोइंटस भी । निरमंड पार करते-करते भोले की फ़ौज का सारा असला-बारूद, आई मीन सारे 'देवदास-बीड़ी' के बण्डल और 'छोटा गोल्ड-फ्लेक सिगरेट' की डिब्बियाँ धुंआ हो चुकी थी जिसका परिणाम फ़ौज का अनशन पर बैठना । ग्रुप लीडर ने अच्छे लीडर होने का परिचय दिया क्योंकि अगर सूमो को रेमू नहीं रोका जाता तो अवश्य ग्रुप लीडर को पीछे बैठी फ़ौज की जान-माल का भरी नुक्सान उठाना पड़ता । अनशन को दर्जन भर बीड़ी-बण्डल और 2 डिब्बी सिगरेट से तोड़ा गया ।

दोपहर 12:30 बजे सूमो ने सभी तो जाओं गाँव उतारा, मैंने सभी भाईयों को लिफ्ट और यात्रा के लिए बधाई दी । सभी ने जोर से ‘हर हर महादेव’ का जयकारा लगाकर यात्रा की शुरुआत करी । मुझे भी आगे बढ़ना है लेकिन पहले एक बैग को यहीं छोड़ना होगा । 5 मिनट में मैंने फालतू सामान दूसरे बैग में भर दिया और एक दूकान वाले अंकल के पास बैग को छोड़कर पहला कदम बढ़ाया श्रीखंड की ओर ।
रकसैक का वजन 8.88 किग्रा. था और मेरा 53 किग्रा., मतलब मेरे बॉडी वेट का लगभग 17% जो कि 3-4% ज्यादा था मेरे वजन के हिसाब से । माउंटट्रेनिंग कौर्स के दौरान हमें बताया गया था कि ट्रैकिंग करते हुए अपने रकसैक का वजन 13-14% रखना चाहिए अपने टोटल बॉडी वेट के हिसाब से जो कि एक उचित अनुपात है । वजन को अपने बॉडी वेट के हिसाब से बढ़ाया भी जा सकता है लेकिन सिर्फ तब जब आपका शरीर अतिरिक्त भार उठाने में सक्षम हो अन्यथा कन्धों और कमर में दर्द होना पक्का है ।

जाओं की ऊंचाई 1949 मी. है और श्रीखंड की 5227 मी. । 161 मी. प्रत्येक किमी. के हिसाब से लगभग 25 किमी. के एक तरफ़ा ट्रैक पर टोटल 4026 मी. का हाईट गेन होने वाला है । कल तक प्लान सिंहगाड़ रुकने का था लेकिन अब जबकि टाइम काफी है तो प्लान में बदलाव आ गया है, आज की रात थाचडू में बीतेगी ।
कल दोपहर से कुछ नहीं खाया था, रात को सिर्फ एक टाइगर बिस्कुट ही खाया था वो भी आधा ।  ट्रैक शुरू करते ही लंगर वालों ने जबरदस्ती खीर की कटोरी हाथ में पकड़ा दी जिसे मैंने एक सांस में खत्म कर दिया । खीर के अंदर जाते ही बाहर बारिश शुरू हो गई । कटोरी धोने के बाद रकसैक के हुड से रेनवियर निकालकर पहन लिए और यात्रा शुरू कर दी ।

सवा एक बजे सिंहगाड़ (2094 मी.) पहुंचा जो कि जाओं से सिर्फ 3 किमी. दूर है, यह दूरी 45 मिनट में तय हुई । यहाँ तक का रास्ता मुश्किल नहीं है, 3 किमी. का रास्ता 3-4 उतराई और चढ़ाई से भरा हुआ है । बीच में कई जगह लंगर भी आते हैं ।
श्रीखंड महादेव यात्रा का पंजीकरण सिंहगाड़ में होता है, यहाँ एक पुलिस वाला और एक डॉक्टर बैठे थे जो ऊपर जाने वाले यात्रियों की एंट्री कर रहे थे इन्हीं के साथ एक व्यक्ति और बैठा था जो ‘श्रीखंड महादेव यात्रा सीमिति’ की तरफ से था यह सज्जन प्रत्येक यात्री से 100 रु. ले रहे थे । मुझे नहीं पता कि ये पर्ची किस बात की काटी गई । सवाल किया तो कुछ नहीं बताया गया । पर्ची को देखकर सिर्फ इतना ही समझ आता है कि ये पंजीकरण रसीद है श्रीखंड महादेव यात्रा सीमित वालों की ।

डॉक्टर साब एक-एक करके सभी को फॉर्म दे रहे थे भरने के लिए । इस फॉर्म के 2 भाग थे, पहला एप्लीकेशन फॉर्म जिसमें यात्री को अपनी व्यक्तिगत जानकारी देनी होगी और दूसरा भाग था मेडिकल, जिसमें यात्री को अपनी पुरानी या वर्तमान बीमारी की जानकारी देनी थी । अपना नाम, पता, मोबाइल नंबर, और आपातकालीन स्थिति के लिए घर का नंबर लिखकर एप्लीकेशन फॉर्म को पूरा किया । अब बारी थी मेडिकल फॉर्म की जिसमें सभी बीमारियों के सामने बने खाली-स्थान को ‘नहीं’ लिखकर भरा ।

पहले फॉर्म की डॉक्टर साब ने रजिस्टर में एंट्री करी और फिर मेरे कई प्रकार के टेस्ट किये जिन्होंने मुझे सकते में डाल दिया । मुझे डॉक्टर पर डॉक्टर कम तांत्रिक होने का शक ज्यादा हुआ क्योंकि मुझे बिना छुए, बिना ब्लड-प्रेशर चेक किये, बिना किसी भी प्रकार की जांच किये सिर्फ एक जादुई सवाल पूछकर मुझे फिट घोषित कर दिया । “कभी कोई बीमारी रही है तुम्हें”, “नहीं सर”, सिर्फ इतने वार्तालाप के बाद डॉक्टर साब ने फॉर्म पर इंग्लिश में ‘FIT’ लिखकर मुझे यात्रा के लिए उत्तीर्ण कर दिया लेकिन मेरी हैरानी का बाँध तब टूट गया जब एक 65 साल के गुजरती अंकल को तांत्रिक-डॉक्टर ने फिट घोषित किया ।

हुआ ये था कि एक ग्रुप गुजरात से आया था यह ग्रुप मेरे पीछे लगा था लेकिन ये अंकल जी शायद थोड़ी ज्यादा जल्दी में थे तो वह एकदम से मेरे आगे आकर खड़े हो गये । इन्हें बार-बार खांसी आ रही थी, इनका साथी पीछे से इन्हें लगातार गुजरती में बोल रहा था कि “हूँ अस्थमा नथी छे बोलो” (मतलब मुझे अस्थमा नहीं है बोलना) । जब तांत्रिक-डॉक्टर ने इनका फॉर्म हाथ में लिया और जादुई सवाल दोहराया तो अंकल जी ने उनके मुंह पर ही खांस दिया । इस हरकत को देखते ही मैंने शर्त लगा ली कि इन्हें तो पक्का इंग्लिश में ‘UNFIT’ मिलेगा लेकिन तांत्रिक-डॉक्टर ने मुझे मेरे बाल नोंचने पर मजबूर कर दिया जब उन्होंने युनिवर्सल जादुई सवाल खांसते अंकल से पूछा “कोई बीमारी तो नहीं है बाबा और हाथ रखकर खांसो”, 2 बार खांसकर बलगम को निगलते हुए गुजरती अंकल ने गर्दन हिलाते हुए “नथी” कहा । मैं बीमार महसूस कर रहा था शर्त हारने की वजह से नहीं बल्कि हाईली कुवालीफाई डॉक्टर को देखकर । आफ्टर आल द फार्मेलिटीस आई वास फीलिंग सिक्क । #वेहर_इज_डिजिटल_इंडिया?

1:15 पर यहाँ से चलना हुआ । अगला पॉइंट ब्राटी नाला है जहां मैं दोपहर 1:35 पर पहुंचा । ये जगह समुन्द्र तल से 2300 मी. की ऊंचाई पर स्थित है । बरास के पेड़ों की वजह से इस जगह का नाम ब्राटी नाला या बराहटी नाला पड़ा । कुर्पन नाला और उमली नाला नाम के दो खड्डों के संगम पर एक छोटा मंदिर भी है जिसमें महादेव के साथ स्थानीय देवता गीरचाडू की प्रतिमा स्थापित है । बराहटी नाला से काली घाटी तक की चढ़ाई डंडा-धार कहलाती है । डंडा-धार मतलब डंडे की तरह खड़ी चढ़ाई । ब्राटी नाला से काली टॉप तक दूरी 9 किमी. है, मतलब यह है कि इस 9 किमी. में यात्रियों को 1594 मी. का हाईट गेन करना पड़ेगा । 177 मी. हाईट गेन प्रति किमी. । यह अकेली चढ़ाई यात्रियों को अपनी प्लानिंग पर गंभीरता से विचार करने पर विवश कर देती है । हैश टैग टफ हिमालयन यात्रा

ब्राटी नाला में ही मैंने टीम सूमो को ओवर टेक किया, पूरा जत्था बरसात के मौसम में आर्टिफीशियल धुंध का निर्माण करके अपने मौज में होने का संकेत दे रहा था ।
डंडा-धार यात्रियों की परीक्षा लेने में माहिर है लेकिन इस बार मुझपर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा । जाओं से अभी तक मैं कहीं भी न तो बैठा था और न ही कहीं रुका था, हाँ सिवाय सिंहगाड़ के जहां पंजीकरण कराया था ।
शायद एक किमी. और आगे बढ़ा होऊंगा कि कुछ टेंट आये । यहाँ खाने और रुकने की व्यव्स्था स्थानियों ने कर रखी थी, इस जगह का नाम 'खुम्बा डुआर' है । कुछ यात्री यहाँ जल-पान ग्रहण कर रहे थे तो कुछ सुध-बुध खोकर सोये पड़े थे । मैं बिना रुके आगे बढ़ गया, रिमझिम बारिश अभी भी जारी थी और चढ़ाई भी ।
ऊपर से नीचे आते यात्रियों को देखकर मन में सिर्फ एक ही ख्याल बार-बार आ रहा था कि दो दिन बाद मैं भी इन्हीं की तरह नीचे जा रहा होऊंगा लेकिन इनके उदास चहेरों की तरह नहीं बल्कि खुश मिजाज चहरे के साथ ।
ऊपर-नीचे आते-जाते यात्री सामने से आने वाले यात्रियों के साथ अपनी मुस्कुराहट बाँट रहे थे और साथ में ‘हर हर महादेव’ के जयकारों की गूंज जो सच में आगे बढ़ने के लिए एक्स्ट्रा हिम्मत दे रहे थे ।

बारिश रुक गई थी लेकिन चढ़ाई नहीं । शाम के 5 बज गये हैं और अभी तक थाचडू का कहीं कोई अता-पता नहीं है । जहां देखो वहां धुंध है साथ ही जहां पैर रखो वहीँ फिसलन है ऊपर से मेरी बोतल का पानी भी खत्म हो गया, प्यास बहुत जोर से लगी, गला एकदम सूख गया । थाचडू के इंतजार में एक जगह आई जिसका नाम ‘थाटी बील’ है, कहते है ये स्थान देवताओं का विश्राम स्थल (रेस्ट पॉइंट) है । और पानी का भी, जिसकी मुझे सख्त जरुरत थी । यहाँ भी स्थानीय लोगों ने खाने और रहने की पूरी व्यव्स्था कर रखी थी । एक दुकान पर पानी मांगने पर एक छोटी लड़की ने ये पुण्य-काम किया, पानी ठंडा और मीठा था । चार-पांच घूंट गले में जाते ही शरीर फूल की तरह खिल गया । #अब_थाचडू_दूर_नहीं
अभी तक का पूरा रास्ता सिर्फ-और-सिर्फ चढ़ाई से पटा मिला, बारिश की वजह से ज्यादातर जगह कीचड़ और फिसलन थी जिस वजह से मेरे जूते पहले ही गीले हो चूके थे, गीले मौसम ने पेड़ों की जड़ों तक को उघाड़ दिया था, देवदार के पेड़ों ने इस जगह को अपने कब्जे में लिया हुआ है । शांत, ठंडी, हवादार, और लुभावनी, मुझे ‘थाटी बील’ बहुत पसंद आई ।

दोपहर 12:30 से चलते-चलते शाम 5:45 पर यात्री थाचडू पहुंचा । 9 किमी. का रास्ता 5 घंटे 15 मिनट में तय किया । यहाँ की ऊँचाई लगभग 3449 मी. है । इस स्थान पर स्थानीय लम्बे समय से अपनी भेड़-बकरियाँ चराते आयें हैं इसलिए इस जगह को स्थानीय भाषा में ‘थाच’ भी कहते है लेकिन आजकल थाच की जगह ‘थाचडू’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है । इस स्थान पर पांडव पुत्र भीम के नाम से एक 6 फुट लम्बी जगह में भीम ओडा मंदिर भी बना है । स्थानियों की माने तो पांडव भी किसी जमाने में श्रीखंड महादेव की यात्रा कर चुके हैं ।
बैग-वैग रखकर सबसे पहले लंगर खाया और चाय पी । अरसू के रहने वाले गोविन्द जी जो जहां पिछले कई सालों से यात्रियों के लिए लंगर की व्यव्स्था करते आ रहे हैं उनसे बात करके पता चला कि इस बार यहाँ यात्रियों के लिए रुकने की व्यव्स्था नहीं है । काफी इंतजार के बाद मुझे वही काम करना पड़ा जो मैं इस सफ़र पर कम से कम करना चाहता था । 100 रु. देकर मुझे प्राइवेट टेंट में जगह लेनी पड़ी, मैंने मोल-भाव भी करना चाहा जैसे कि “भाई जी कुछ कम हो सकता है तो बताओ, आप बस रहने की जगह दे दो बाकी मैट्रेस और स्लीपिंग बैग तो मेरे पास अपना है ही”, “नहीं भाई जी बिलकुल भी कम नहीं हो पायेगा चाहो तो आप कहीं और पता कर सकते हो” । पता तो मैं पहले ही कर चुका था जब कहीं भी इससे कम में बात नहीं बनी तो इसी में रुकना फाइनल कर लिया ।

6 बजे लंगर वालों ने आरती शुरू करी, आरती के दौरान सभी को थाचडू से श्रीखंड महादेव के दूसरे दर्शन हुए, इस यात्रा पर श्रीखंड के पहले दर्शन जाओं गाँव से होते हैं । यह भी संभव है कि महादेव जाओं और थाचडू के बीच में भी कहीं दर्शन देते हों ।
7 बजे लंगर चालू हो गया जिसमें कढ़ी-चावल सर्व किया गया, पेट भरके खाया, पानी पिया, चाय पी और टेंट में आकर अपने स्लीपिंग बैग में घुस गया । थोड़ी देर टेंट वाले से बात की और लगभग 9 बजे मैं खुद को नींद के हवाले कर दिया ।

माउंटेनियरिंग कौर्स करने के आपको काफी फायदे होते हैं जैसे कैसे चलना है कैसे नहीं, रुकने पर कितना लिक्विड पीना है, कितना खाना खाना है और यह सब जानकारी तब काम आती है जब आपका मन बिलकुल भी नहीं कर रहा हो खाने का । ज्यादातर मैंने देखा है कि ट्रैकिंग पर आकर लोगों की भूख-प्यास मर जाती है और सबसे बड़ी गलती तो लोग कैंप पहुंचकर करते हैं, टेंट देखते ही उसमे घुस जाते हैं और सो भी जाते हैं । माउंटेनियरिंग कौर्स में सिखाई शिक्षा का मैं अब हमेशा पालन करता हूँ जैसे कि भूख लगे या न लगे तब भी मैं खाता हूँ, पेट भरकर नहीं खा पाता इसलिए थोड़ा-थोड़ा कई बार खाता हूँ । कैंप साइड पर पहुंचकर हमेशा सभी को थोड़ी स्ट्रेचिंग जरुर करनी चाहिये ताकि शरीर की मांसपेशियां स्टीप या खिंच न जाएँ ।
इस यात्रा के हिसाब से थाचडू एक उचित स्थान है जहां सभी अपनी पहली रात बिता सकते हैं, तेज चलने वाले यहाँ से 3 किमी. आगे काली टॉप तक भी पहुंच सकते हैं लेकिन वहां रात बिताने के लिए सिर्फ 5-6 टेंट ही उपलब्ध हैं ।

कल रात मैं बस में था और आज की रात थाचडू (3449 मी.) । कल का प्लान भीम डुआरी या पार्वती बाग पहुंचने का है । आशा करता हूँ कल मौसम साफ़ रहेगा और मेरी आंख जल्दी खुल जाएगी । यह दूसरा दिन है इस यात्रा का और आज का खर्चा 200 रु. रहा है और टोटल अभी तक 637 रु. रहा ।
।। हर हर महादेव ।।

सिंहगाड़ : श्रीखंड महादेव यात्रा पंजीकरण केन्द्र

सिंहगाड से आगे सीमेंट की बनी पगडण्डी यहाँ गिरे तो पक्का बहे

खुम्बा डुआर से दिखता घाटी का शानदार नज़ारा

थाटी बील से थोड़ा पहले सुस्ताते यात्री

दर्शन करके लौटते खुशनसीब यात्री

2 दिन बाद मैं भी खुशनसीब होने वाला हूँ

थाटी बील पर यात्रियों  के लिए लगे टेंट

देवदार के जंगल से गुजरते यात्री

बारिश की मार ने पेड़ों की जड़ों तक को उखाड़ दिया है

आखिरी पुश थाचडू के लिए

भरे सिलिंडर थाचडू छोड़कर और खाली जाओं ले जाते नेपाली #रियल_भोले_की_फ़ौज

गेरुवे वस्त्र, लम्बी जटाएं, नंगे पैर और श्रीखंड

थके यात्रियों के लिए थाचडू पहुंचना किसी स्वर्ग से कम नहीं है

गहरी नींद में थके कुछ यात्री थाचडू में सोते हुए

शाम की आरती और बादलों के हटने की प्रतीक्षा करते श्रद्धालु

और दर्शन हो गये, जय श्रीखंड महादेव की

मेडिकल पंजीकरण पर्ची जो सिंहगाड में कटी

मेडिकल पर्ची के पीछे का नज़ारा

100 वाली रसीद जोकि सिंहगाड में श्रीखंड महादेव सीमिति वालों ने काटी

शिमला से जाओं का मोटरएबल मार्ग का नक्शा

शिमला से जाओं गाँव का ऊँचाई (Elevation) चार्ट 

जाओं से थाचडू का सैटेलाइट मैप

जाओं से थाचडू का ऊँचाई (Elevation) चार्ट 

भाग-1 : बीड़-शिमला (Bir-Shimla)

Comments

  1. Great work bhai...keep exploring
    God bless you

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  2. Great work bhai...keep exploring
    God bless you

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  3. ट्रेकिंग के दौरान भूख नहीं लगने पर भी भोजन लेना चाहिए। कोर्स करने का यही तो फायदा है। बारीकियां पता चल जाती है। बहुत ही सुन्दर चित्रों के साथ शानदार लेख।

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    1. सहमत आपकी बात से । धन्यवाद टिपण्णी का ।

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  4. सुखडी से बंदे का अंगूठा कहाँ दिखता होगा, बंदा दूर से दिख जाये वो ही बहुत है।
    शानदार विवरण, थाचडू की चढायी में बहुत हिम्मत हार बैठते है।

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    1. ख़ुशी महसूस होती है आपके याद करने पर । ठीक कहा थाचडू की चढ़ाई आगे के सफ़र पर संदेह खड़ा कर देती है यात्रियों के दिल में ।

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  5. बहुत ही रोचक यात्रा लेख। साथ में आपकी ट्रैकिंग जानकारी भी मिल रही है,,, जय भोले नाथ

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