23 जुलाई 2017
बाहर से छनकर आती रोशनी ने पलकों को खुलते ही चिकोटी काटी और नये दिन में स्वागत किया । पीली-सफ़ेद तिरपाल से बने टेंट के भीतर कोई 15 यात्री हरे-नीले कम्बलों में अभी भी नींद के आगोश में थे । बाहर यात्रियों की आवा-जाही शुरू हो चुकी थी और रह-रहकर ‘हर हर महादेव’, के जयकारें कानों को सुनाई दे रहे थे । न घड़ी, न मोबाइल और न ही किसी और प्रकार का डिवाइस पास था जो समय की पहचान करा सके । कुछ मिनटों बाद बगल में लेते एक लड़के को जब बार-बार करवटें बदलते देखा तो तुरंत पूछ लिया कि “भाई जी टाइम कितना हुआ होगा ?”, जवाब उनके कम्बल के भीतर से ही आया “साढ़े पांच” ।
जवाब मेरी सोच के अनुकूल नहीं था क्योंकि मैंने स्लीपिंग बैग में लेते-लेते अनुमान लगाया था कि समय 6 से 7 के बीच होगा पर अब जब सही समय का पता चल गया है तो क्यों न इस नये ताजा दिन की शुरुआत की जाये ।
जवाब मेरी सोच के अनुकूल नहीं था क्योंकि मैंने स्लीपिंग बैग में लेते-लेते अनुमान लगाया था कि समय 6 से 7 के बीच होगा पर अब जब सही समय का पता चल गया है तो क्यों न इस नये ताजा दिन की शुरुआत की जाये ।